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________________ प्रथम पर्व १६७ आदिनाथ-चरित्र ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण और वर्द्धमान इन चारों शाश्वत अर्हन्तों की प्रतिमायें हैं। शक ेन्द्र के चारों दिक्पालोंने, अष्टान्हिका उत्सव पूर्व क. उन प्रतिमाओं की यथाविधि पूजा की । ईशान- इन्द्र उत्तर दिशा के नित्य रमणीक - रमणीय नाम के अञ्जनगिरि पर उतरा और उसने पर्वतपर वने हुए चैत्य में जो पहले की तरह शाश्वती प्रतिमा है, उसकी अष्टान्हिक-उत्सवपूर्वक पूजा की । उसके दिक्पालों ने उस पहाड़ के चारों ओर की चार बावड़ियों के दधिमुख पर्वतों के ऊपर बने चैत्योंकी शाश्वती प्रतिमाओं का उसी तरह अट्ठाई महोत्सव किया । अमरेन्द्र दक्षिण दिशास्थित नित्योध्योत नाम के अञ्जनगिरि पर उतरा और रत्नों से नित्य प्रकाशमान् उस पर्वत के चैत्य की शाश्वती प्रतिमा की बड़ी भक्ति से अष्टान्हिक महोत्सव मूक पूजा की और उसकी चार वापिकाओं के अन्दर के चार दधिमुख पर्वतों के ऊपर के चैत्यों में उसके चार लोकपालों ने, अचल चित्त से महोत्सव पूर्व क वहाँ की प्रतिमाओं की पूजा की। बलिनामक इन्द्र पश्चिम दिशास्थित स्वयंप्रभ नाम के अञ्जन- गिरिपर मेघके से प्रभाव से उतरा । उसने उस पर्वत के चैत्यमें देवताओं की दृष्टिसे पवित्र करनेवाली ऋषभा चन्द्रानन प्रभृति अर्हन्तों की प्रतिमाओं का उत्सव किया। उसके चार लोकपालोंने भी अञ्जनगिरि की चारों दिशाओं की चार वापिकाओं के दधिमुख पर्वतों की शाश्वती प्रतिमाओं का उत्सव किया । इस तरह सारे देवता नन्दीश्वर द्वीपमें खूब उत्सव कर करके, जिस तरह आये थे; उसी तरह अपने-अपने स्थानों को चले गये ।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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