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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चदित्र सिंहासनपर बिठाकर, अपने मन के जैसे साफ निर्मल पानी से, उन्होंने दोनों को स्नान कराया। सुगन्धित कषाय वस्त्रों से उनका शरीर पोंछकर, गोशीष चन्दन के रस से उन को चर्चित किया और दोनों को दिव्य वस्त्र और बिजली के प्रकाश के समान विचित्र आभूषण पहनाये। इसके बाद भगवान् और उन की जननी को उत्तर चतुःशाल में ले जाकर सिंहासनपर बिठाया। वहाँ उन्होंने अभियोगिक देवताओं से, क्षुद्र हिमन पर्वत से, शीघ्र ही गोशोर्ष चन्दन की लकड़ियाँ मँगवाई। अर - जीके दो काठों से अग्नि उत्पन्न करके, होम-योग्य बनाये हुए गोशीर्ष चन्दन के काठ से, उन्होंने हवन किया। हवन की आग से जो भस्म तैयार हुई, उस की उन्होंने रक्षा-पोटलियाँ बनाकर दोनों के हाथों में बाँध दीं। प्रभु और उन की जननी दोनों ही महामहिमान्वित थे, तोभी दिक्कुमारियाँ भक्ति के आवेश में ये सब कर रही थीं। पीछे 'आप पर्वत की जैसी आयु. वाले होओ-प्रभु के कान में ऐसा कहकर, पत्थर के दो गोलो. फा उन्होंने आस्फालन किया। इसके बाद प्रभु और उन की जननी को सूतिका-भुवनमें पलँगपर सुलाकर, वे मांगलिक गीर गाने लगीं। सौधर्मेन्द्रका भगवान्के पास आना और उनकी स्तुति करना। अब उस सभय, लग्न-काल में जिस तरह सव बाजे एक
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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