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________________ आदिनाथ-चरित्र १५६ प्रथम पर्व इसलिये आपका पुत्र सर्व गुण रूप रत्नोंकी खानके समान होगा, और आपने अपने मुहमें जाज्वल्यमान अग्निको प्रवेश करते देखा, इससे आपका पुत्र अन्य तेजस्वियोंके तेजको दूर करने वाला होगा । हे स्वामिनी ! आपनेजो चौदह स्वप्न देखे हैं, वे इस बात की सूचना देते हैं, कि आपका आत्मज-पुत्र–चौदह भुवनका स्वामी होगा। इस तरह स्वप्नार्थ कह कर, और मरूदेवा माताको प्रणाम करके, सब इन्द्र अपने-अपने स्थानोंको चले गये । स्वामिनी मरुदेवा भी स्वप्नार्थ-सुधासे सिञ्चित होनेसे उसी तरह उल्लसित और प्रसन्न हुई, जिस तरह वर्षा कालके जलसे सींची हुई पृथ्वी उल्लसित और हर्पित होती है;अर्थात् बरसातके पानीसे जमीन जिस तरह तरो-ताज़ा और हरीभरी होती है ; उसी तरह मरुदेवा भी स्वप्नफल या रुबाबकी ताबीर सुननेसे खूब खुश हुई, । - मरुदेवाकी गर्भयुक्त शरीर-स्थिति । अब, जिस तरह मेघमाला सूर्यसे, सीप मोती से और गिरिकन्दरासिंह से शोभा देती है ; उसी तरह महादेवी मरुदेवा उस गर्भ से शोभित होने लगीं। यद्यपि वे स्वभावसे ही प्रियंगुलता के समान श्यामवर्ण थीं; तथापि शरद ऋतु से मेघमाला जिस तरह पाण्डुवर्ण हो जाती है, उसी तरह वे गर्भके प्रभाव से पाण्डुवर्ण होने लगीं। जगत् के स्वामी हमारा दूध पीवेंगे, इस हर्ष से ही मानो उन के स्तन पुष्ट और उन्नत होने लगे। मानो भगवान् का मुंह देखने के लिये पहलेसे ही उत्कंठित हों, इस तरह
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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