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________________ आदिनाथ चरित्र १५४ प्रथम पव हृदयके भीतर खुशी समाती न हो, इसलिये वह स्वप्न - सम्बन्धी सारे वृत्तान्तको उद्गार करता हो, इस तरह यथार्थ हाल उन्होंने नाभि- राजको कह सुनाया । नाभिराज ने अपने सरल स्वभावके अनुसार स्वप्नका विचार करके — 'तुम्हारे उत्तम कुलकर - पुत्र होगा' ऐसा कहा । मरुदेवा माताके पास इन्द्रका आगमन स्वप्नफल कथन । उस समय, स्वामीकी मात्र कुलकरपनसे ही सम्भावना की, यह अयुक्त है, अनुचिन. है, – ऐसे विचारकरके मानो कोपायमान हुए हों, इस तरह इन्द्रोंके आसन कम्पायमान हुए । हमारे आसन क्यों कम्पायमान हुए, इसका ख़याल करते ही — इस बातकी खोज दिमाग में करतेही, भगवानके च्यवनकी बात इन्द्रोंको ध्यानमें आगई – वे समझ गये कि, भगवान्‌का च्यवन हुआ है। इसी समय तत्काल इशारा किये हुए मित्रोंकी तरह, सब इन्द्र इकट्ठे होकर, भगवान् की माताको स्वप्नका अर्थ बताने के लिए वहाँ आये । वहाँ आतेही हाथ जोड़कर, जिस तरह वृत्तिकार सूत्रके अर्थको स्पष्ट करता है— सूत्रका खुलासा मतलब समझाता है, उसी तरह वे विनय-पूर्वक स्वप्नके अर्थको स्पष्ट करने लगे- अर्थात् स्वप्नका फल या ख़्वाब की ताबीर कहने लगे: 66 हे स्वामिनी ! आपने स्वप्नमें पहले वृषभ - बैल देखा; इस कारण आपका पुत्र मोहरूपी पंक—कीच में फँसे हुए धर्म रूपी रथका उद्धार करनेमें समर्थ होगा। हाथी देखनेसे आपका पुत्र
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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