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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व नामाकृतिद्रव्यभावैः, पुनतस्त्रिजगज्जनम् । क्षेत्रे काले च सर्व्वस्मिन्नहतः समुपास्महे ॥२॥ - समस्त लोकों और सब कालों में, अपने नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव – इन चार निक्षेपों के द्वारा, संसार के प्राणियों को पवित्र करने वाले तीर्थङ्करों की उपासना हम अच्छी तरह से करते हैं । खुलासा - तीर्थङ्कर क्या करते हैं ? तीर्थङ्कर जगतके प्राणियोंको पापमुक्त या पवित्र करते हैं । हाँ, तीनों लोक और तीनों कालों में तीर्थङ्कर प्राणियों को पवित्र करते हैं, उनको पापों-दुःखों से छुड़ाते हैं । तीर्थङ्कर किसके द्वारा प्राणियों को पवित्र करते हैं ? अपने नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों + द्वारा । ऐसे संसार को पवित्र करनेवाले तीथङ्करों की उपासना या अराधना सभी लोगों को करनी चाहिए । ग्रन्थकार महाशय कहते हैं, जो + नाम = नाम अरिहन्त = किसी व्यक्ति की अरिहन्त संज्ञा । स्थापना = स्थापना अरिहन्त = अरिहन्त का चित्र या मूर्त्ति । द्रव्य = द्रव्य अरिहन्त = जो रिहन्त पद पा चुका या पानेवाला है। भाव =भाव अरिहन्त = जो वर्त्तमान रिहन्त पद का अनुभव कर रहा हैं । नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव - ये शब्द के विभाग हैं। इन विभागों को ही "निक्षेप" कहते हैं । इन चारों निक्षेपों द्वारा तीर्थङ्कर प्राणियोंको पवित्र करते हैं। दूसरे शब्दों में हम यों भी कह सकते हैं कि, हम जगत के प्राणी अरिहन्तों के नाम, अरिहन्त की मूर्तियों या तस्वीरों, अरिहन्त पद पा चुकने वाले या पाने ही वाले और वर्त्तमान समय में अरिहन्त पदका अनुभव करनेवालों द्वारा पवित्र होते हैं ।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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