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आदिनाथ चरित्र 24-00-0-04
p.Bowwy
अरे दुष्ट ! मेरे महात्मा पतिकी तू और ही तरह अपने जैसी सम्भावना करता है,तो मित्रके मिषसे तुझ शत्रु जैसे को धिक्कार है ! रे पापी! चाण्डाल ! तू यहाँ से चला जा, खड़ा न रह, तेरे देखनेसे भी पाप लगता है।
(पृष्ठ १३७ )