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________________ आदिनाथ चरित्र १३६ प्रथम पर्व ऐसे ही समय में अशोकदत्त उसके घर आया, और उसकी पत्नी प्रियदर्शनासे कहने लगा- 'सागरचन्द्र हमेशा धनदत्त सेठकी स्त्रीके साथ एकान्तमें मिलता- -जुलता है, उसका क्या मतलब है ? स्वभावसे ही सरलहृदया प्रियदर्शना ने कहा- “उसका मतलब आपके मित्र जाने अथवा सर्वदा उनके दूसरे हृदय आप जानें । व्यवसायी और बड़े लोगोंके एकान्त सूचित कामोंको कौन जान सकता है ? और जो जाने वह घरमें क्यों कहे ?" अशोकदत्त ने कहा – “तुम्हारे पतिका उसके साथ एकान्तमें मिलने-जुलने का जो मतलब है, उसे मैं जानता हूँ, पर कह कैसे सकता हूँ ?” प्रियदर्शना ने कहा- -' उसका क्या मतलब हैं ? वे उससे एकान्तमें क्यों मिलते हैं ?" अशोकदत्तने कहा – 'हे सुन्दर भौहों वाली सुन्दरी ! जो प्रयोजन मेरा तुम्हारे साथ है, वही उनका उसके साथ है ।' अशोकके ऐसा कहने पर भी उसके भावको न समझकर सरलाशया प्रियदर्शना ने कहा- 'तुम्हारा मेरे साथ क्या प्रयोजन है ?' अशोकने कहा – 'हे सुभ्रु ! तेरे पति के सिवा, तेरे साथ क्या किसी दूसरे रसीले सचेतन पुरुषका प्रयोजन नहीं ?" प्रियदर्शनाकी फट्कार । कान में सूई जैसा, उसकी दुष्ट इच्छाको सूचित करने वाला अशोकदत्तका वचन सुनकर प्रियदर्शना सकोपा हो गई—को काँप उठी और नीचा मुँह करके आक्षेप के साथ बोली-‍ अम
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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