SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिनाथ चरित्र १२० प्रथम पर्व भी हल्का कर सकते थे । उन्हें वह गुरुत्व शक्ति प्राप्त होगई, जिससे वह अपने शरीर को, इन्द्रादि देवताओं के लिए भी असहनीय, वज्र से भी भारी बना सकते थे। उन्हें ऐसी प्राप्ति शक्ति प्राप्त होगई, जिस से वह, पृथ्वीपर रहनेपर भी, वृक्षके पत्तों के समान मेरुके अग्रभाग और नक्षत्र आदिकों को छू सकते थे; अर्थात् पृथ्वीपर खड़े हुए वह आकाश के तारों को हाथों से छू सकते थे । उनको ऐसी प्राकाम्य शक्ति प्राप्त होगई थी, जिससे वह जलमें थलकी तरह चल सकते थे और जलकी तरह पृथ्वीमें उन्मज्जन- निमज्जन कर सकते थे । उन को ऐसी ईशत्व शक्ति प्राप्त होगई थी, जिससे वह चक्रवर्त्ती और इन्द्र की ऋद्धि को बढ़ा सकते थे। इनको ऐसी अपूर्व वशित्व शक्ति प्राप्त हो गई थी, जिस से वह स्वतंत्र और क्रूर जन्तुओं को भी वश में कर सकते थे। उन्हें ऐसी अप्रतिधाती शक्ति प्राप्त होगई थी, जिससे वह छेद की तरह पर्वत के बीच से निःशंक गमन कर सकते थे । उनको ऐसी अप्रतिहत अन्तर्धान होने की सामर्थ्य होगई थी कि वह हवा की तरह सब जगह अदृश्य रूप धारण कर सकते थे और ऐसी काम रूपत्व शक्ति प्राप्त होगई थी, जिससे वह एक ही समय में अनेक प्रकार के रूपों से लोक को पूर्ण कर सकते थे । एक अर्थ रूप बीज से अनेक अर्थ रूप बीज जान सके ऐसी ज बुद्धि, कोठी में रखे हुए धान्य की तरह, पहले सुने हुए अर्थ को याद किये बिना यथास्थित रहे ऐसी कोष्ट बुद्धि और आदि
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy