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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र उचित नहीं । किसी सभय धर्मार्थ चिकित्सा भी करनी चाहिए । निदान और चिकित्सा में जो तुम्हारी कुशलता है, उस के लिए धिकार है ; क्योंकि ऐसे रोगी मुनि की तुम उपेक्षा करते हो । महोधर कुमार की बातें सुन कर, विज्ञान-रत्न के रत्नाकरसमान जीवानन्दने कहा-'तुमने मुझे याद दिलाई, यह बहुत ही अच्छा काम किया। जगतमें प्रायः ब्राह्मण व प-रहित नज़र नहीं आते: वणिक अवञ्चक नहीं होते; देहधारी निरोग नहीं होते: मित्र ईर्ष्या-रहित नहीं होते; विद्वान् धनवान नहीं होते: गुणी गर्वरहित नहीं होते: स्त्रियाँ चपलता-विहीन नहीं होती और राजपुत्र पदाचार्ग नहीं होते। यह महामुनि अवश्य ही चिकित्सा करने लायक है । लेकिन मेरे पास दवा का सामान नहीं है, यह अन्तराय रूप है । उस बीमारी के लिए जिन दवाओं की ज़रूरत है, उन में से मेरे पास 'लक्षपाक तैल' है; परन्तु गोशीर्ष चन्दन औइ रत्न कम्बल मेरे पास नहीं हैं । इनको तुम लाकर दो।' इन दोनों चीजों को हम लायेंगे, यह कह कर वे पांचों यार बाज़ारको चले गये और मुनि अपने स्थान को चले गये। उन पाँचों मित्रोंने बाज़ार में जाकर एक बूढे व्यापारी से कहा--'हमें गोशीर्ष चन्दन और रत्नकम्वल दाम लेकर दीजिये।' उस वणिक ने कहा-'इन दोनों चीज़ों का मूल्य एक-एक लाख मुहर है। मूल्य देकर आप उन्हें ले जा सकते हैं: परन्तु पहले यह बतलाइये कि, उनकीआप को किस लिए ज़रूरत है।' उन्होंने कहा--'जो दाम हों सो लीजिये और उन्हें हमें दीजिये । एक महात्माकी चिकित्साके लिए उनकी ज़रूरत है।' यह बात सुनते
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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