SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व है। वे सगरसेन और मुनिसेन नाम के, सूर्य चन्द्रमा के समान, दोनों मुनि इस समय भी इसी वनमें मोजूद हैं। वे दोनों ही सहोदर भाई हैं-एक माँके पेटसे पैदा हुए हैं।' यह समाचार सुनते ही राजा वज्रजंघ अत्यन्त प्रसन्न हुए और जिस तरह विष्णु समुद्र में निवास करते हैं, उसी तरह उन्होंने उस वनमें निवास किया। देवमण्डली से घिर कर उपदेश या देशना देते हुए उन दोनों मुनियों के भक्तिभार से मानों नम्र हो गया हो, इस तरह उस राजा ने स्त्री-सहित वन्दना की। उपदेश या देशना के शेष होने पर, उसने अन्न, वस्त्र और उपकरणादिकों से मुनियों को प्रतिलाभ्या ; अर्थात् अन्न वस्त्र आदि भेंट देकर उन . का सत्कार किया। इस के बाद मनमें विचार किया-"ये दोनोंही सहोदर भाव में समान हैं। दोनों ही निष्कषाय, निर्मम और निष्परिग्रह हैं। ये दोनोंही धन्य हैं ; पर मैं इनके जैसा नहीं हूँ ; अत: मैं अधन्य हूँ। व्रत को ग्रहण करनेवाले और अपने पिता के सन्मार्ग को अनुसरण करनेवाले ये दोनों औरस पुत्र हैं और मैं वैसा न करने के कारण, बिक्री से ख़रीदे हुए पुत्र के जैसा हूँ। ऐसा होते हुए भी, यदि व्रत ग्रहण करू तो अनुचित नहीं है ; क्योंकि दीक्षा, दीपक की तरह, ग्रहण करने मात्रसे ही अज्ञान-अन्धकार का नाश करती है ; अतः यहाँ से नगर में पहुँच, पुत्र को राज्य सौंप, हंस जिस तरह हंस की गति का आश्रय लेता है, मैं भी अपने पिता की गति का आश्रय लूंगा ; अर्थात् मैं भी अपने
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy