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________________ आदिनाथ-चरित्र २ प्रथम पर्व करनेवाली उस राजबाला को यौवन प्राप्त हुआ। एक दिन, सन्ध्याकी अभ्रलेखा जिस तरह पर्वत पर चढ़ती है ; उसी तरह वह अपने सर्वतोभद्र महल पर चढ़ी। उस समय, मनोरम नामक बाग़ीमें किसी मुनीश्वर को केवल-ज्ञान प्राप्त होने के कारण, वहाँ जानेवाले देवताओं पर उस की नज़र पड़ी। उन को देखते ही, मैंने पहले भी ऐसा देखा है, ऐसा विचार करने वाली उस बालाको, रात के स्वप्न की तरह, पूर्व जन्म की बात याद आगई। मानो हृदय में उत्पन्न हुए पूर्व जन्म के ज्ञान का भार वहन न कर सकती हो, इस तरह वह बेहोश होकर ज़मीनपर गिर पड़ी। सखियों के चन्दन प्रभृति-द्वारा उपचार करने से उसे होश आ गया। उठते ही वह अपने चित्तमें विचार करने लगी-“पूर्व जन्म में ललिताङ्ग देव नामक देव मेरे पति थे । उनका स्वर्गसे पतन हुआ है ; परन्तु इस समय वे कहाँ हैं, इस बात की ख़बर न लगनेसे मुझे दुःख हो रहा है। मेरे हृदय पर उन्हीं का प्रतिबिम्ब या अक्स पड़ा हुआ है और वेही मेरे हृदयेश्वर हैं ; क्योंकि कपूर के बासन में नमक कौन रखता है ? अगर मेरे प्राणपति मुझसे बातचीत न करें, तो मेरा औरों से बातचीत करना वृथा है।' ऐसा विचार करके, उसने मौन धारण कर लिया--बोलना छोड़ दिया। श्रीमती के पाणिग्रहण के उपाय । जब वह न बोली, तब सखियाँ देवदोष की शङ्का से तन्त्रमन्त्र
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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