SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२/योग-प्रयोग-अयोग मन का स्थान मस्तिष्क है । मस्तिष्क के पिछले हिस्सों से अर्थात् मेडुला ओब्लोंगेटा से सम्पूर्ण शरीर में संदेशा मिलता है जैसे-इच्छा, द्वेष, सुख-दुख, ज्ञान, संकल्प आदि इसी में उत्पन्न होते हैं। यदि मस्तिष्क में वृत्तियों का आवेग होता है और गड़बड़ी होती है तो मन भोग के उपभोग से भ्रष्ट हो जाता है। छोटा मस्तिष्क (Cerebellum) से इड़ा-पिंगला और सुषुम्ना तीनों का प्रवाह दो प्रकार से होता है। [ जैसा आकृति 2 में दिखाया गया है।] १. धन विद्युत् (Positive) ऊपरी विभाग में है ऋण विद्युत् (Negative) नीचे के विभाग में है। इस प्रकार सुषुम्ना से सहस्त्रसार तक धन विद्युत् और ऋण विद्युत् सेतु की तरह विद्यमान है। अतः उत्तरीय ध्रुव में धन विद्युत होने से यदि मस्तिष्क रखकर सोवे तो Physical body में तनाव पैदा होता है। Etheric body में रासायनिक परिवर्तन होता है और Astrol body में कर्म-विपाक संक्रमण रूप में परिवर्तन होता है। प्राप्तिक्रम का निरीक्षण १. शारीरिक आकर्षण-योग है। २. इन्दियजय, आसनजय वायु-श्वासोश्वासजय, शिथिलीकरण आदि प्रयोग है। ३. कायोत्सर्ग से स्थिरीकरण काय-गुप्ति अयोग है। इस स्थूल शरीर को स्थिर करने का उपाय है काय-गुप्ति । काय-गुप्ति से विवेक-चेतना जागृत होती है। काय-गुप्त की साधना का प्रारम्भ होते ही शारीरिक ममत्व टूटता है, शरीर और मैं भिन्न हैं ऐसी प्रतीति होती है। काय-गुप्ति का अर्थ केवल प्रवृत्ति का विसर्जन ही नहीं है, किन्तु शरीर की मूर्छा का टूट जाना है, अर्थात् देह मूर्छा न होना ही काय-गुप्ति की साधना है। काय-गुप्ति की साधना से कायोत्सर्ग की साधना सधती है। सहज निवृत्ति का प्रयोग भोग को योग में और कायोत्सर्ग राग को त्याग में परिवर्तित करने का सामर्थ्य जगाता है। इस प्रकार काय-गुप्ति कायोत्सर्ग के प्रयोग से अयोग तक पहुँचकर सभी समस्याओं को हल करने में समर्थ है।
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy