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३०/योग-प्रयोग-अयोग
प्राणायाम द्वारा तैजस-लब्धि सम्पन्न होती है। तैजस लब्धि द्वारा नाना प्रकार की ग्रंथियाँ, चक्र आदि जाग्रत होते हैं । ग्रंथियाँ या चक्र जागृत होने से प्राणधारा जो टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती थी, वह सरल, सीधी हो जाती है। प्राणधारा सहज होते ही शारीरिक और मानसिक स्वस्थता प्राप्त होती है। विपरीत वातावरण में भी शान्ति का अनुभव होता है । अनेक सिद्धियाँ और लब्धियाँ जाग्रत होती हैं । अपने विचारों से दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता बढ़ती है। प्राणायाम की साधना से एक ऐसी चुम्बकीय शक्ति प्राप्त होती है, जिससे दुर्बल से दुर्बल मानव भी सबल होता है। उसके आभा मंडल से अनेक ऊर्जाएँ स्फूरायमान होती हैं । इस प्रकार इन ऊर्जाओं से नाड़ीतन्त्र-स्वरतन्त्र शुद्ध होता है और नाभि, हृदय-फेफड़े, मस्तिष्क आदि सुदृढ़ होते
जब प्राण वायु का क्रम मेरुदण्ड (Medulla Oblongata) में होकर किया जाता है तब मूलाधार से वायु ऊर्ध्वगामी होता हुआ मस्तिष्क तक पहुँचता है और आज्ञाचक्र द्वारा नथुनों से बाहर निकलता है। नाड़ी-तन्त्र
साधना के क्षेत्र में चक्र के साथ नाड़ी तत्त्व का उपयोग भी महत्त्वपूर्ण है। शरीर में नाड़ी तत्त्व का विशेष उपयोग होता है क्योंकि सभी नाड़ियों से शरीर में शक्ति का संचार होता है। तैजस शक्ति और चेतना शक्ति का माध्यम नाड़ी शक्ति है । यही सम्पूर्ण शक्ति स्थूल शरीर में प्रवाहित होती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार प्राणशक्ति और नाड़ीशक्ति जैव विद्युत (Biological Electric) है। सिर से पैर तक सम्पूर्ण शरीर में जो नाड़ीतन्त्र प्रसारित हुआ है उसका सम्बन्ध तैजस शक्ति से जुड़ा हुआ है।
सुषुम्ना नाड़ी सर्वोत्तम नाड़ीतन्त्र है। इस तन्त्र का प्राण शक्ति से गहरा सम्बन्ध है। नाड़ीतन्त्र जितना विशुद्ध और बलवान होगा प्राणशक्ति उतनी ही प्रबल होती है। नाड़ीतन्त्र की विशुद्धि स्वर नियन्त्रण से होती है। हमारे दाएँ और बाएँ नथुने से जो वायु प्रसारित होती है वह इड़ा और पिंगला नाड़ी से निकलता है और दोनों नथुने से निकलता है । वह सुषुम्ना नाड़ी से प्रसारित होता है।
इस प्रकार तीनों नाड़ियाँ प्राणवायु से सम्बन्धित है अतः तीनों नाड़ियों से विद्युत् प्रवाह प्रसारित होता है। धन (Positive) और ऋण (Negative) विद्युत् । दोनों विद्युत् भिन्न-भिन्न धारा (Waves)में प्रवाहित होती है। शरीर के ऊपर के विभाग में धन विद्युत् है और नीचे के विभाग में ऋण-विद्युत् । उत्तरी ध्रुव में धन विद्युत् है, दक्षिणी ध्रुव