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________________ योग-प्रयोग-अयोग/२७ केन्द्र हैं। जैसे ही मन एकाग्र होता है, मूलाधार से स्नायु ऊपर उठने लगते हैं । ऊर्ध्वाकर्षण का अनुभव उसी क्षण मणिपुर-चक्र को जागृत करता है। जैसे ही चक्र का उद्घाटन होगा, स्नायु सहज संकुचित होते जायेंगे। यदि स्नायु संकुचित नहीं होते हैं तो मन केन्द्रित नहीं होता है, विकल्पों में भटक जाता है। मन की एकाग्रता और मूलाधार का सम्बन्ध अत्यन्त गहरा है। इन गहराई से मूलाधार में विद्युत संचित होती है, सुषुम्ना पृष्ठ होती है और स्नायु मजबूत होते हैं। मूलाधार पर मन केन्द्रित होते ही जैसे नीचे के स्नायु संकुचित होते हैं और विद्युत् का प्रवाह प्रवाहित होता है, वैसे ही स्वाधिष्ठान चक्र संचारित होता है । मूलाधार से स्वाधिष्ठान और स्वाधिष्ठान से मणिपुर आदि चक्रों में विद्युत् का आदान-प्रदान रहता आसन-जय शरीर तन्त्र की सबलता आसन शुद्धि से होती है। ऐसे तो आसन अनेक हैं, किन्तु शरीर तन्त्र की सबलता के लिए कुछ आसन अनिवार्य है, जैसे पदमासन, पर्यंकासन वजासन, उत्कटिकासन, वीरासन, भद्रासन, दंडासन, गोदोहिकासन, कायोत्सर्गासन। इन आसनों में से जिस आसन में मन स्थिर होवे सुखरूप लम्बे समय तक बैठ पाये, और चंचलता से पर होवे वही आसन का प्रयोग साधक के लिए उपयुक्त है। आसनों से शारीरिक लाभ ही नहीं मानसिक और आध्यात्मिक लाभ भी होता है। किसी भी आसन-जय से तनाव मुक्ति अवश्य होती है और प्रसन्नता, सहजानन्द, त्याग और वैराग्य सहज उत्पन्न होता है । आसन-जय से शरीर की चंचलता दूर होती है, रोग से मुक्ति होती है और आत्मिक शक्ति मिलती है । आसन-जय से .प्राण शक्ति सतेज बनती है। शारीरिक शक्ति सतेज होती है और तैजस से औदारिक शरीर प्रभावी बनता है। स्थूलकाय स्थिर होते ही सूक्ष्म तैजस शरीर भी स्थिर होता है। सम्पूर्ण शरीर में प्राणशक्ति सहज गति से संचारित होती है और आत्मतत्त्व की अनुभूति होती है। इस प्रकार आसन-जय से स्थूल और सूक्ष्म दोनों शरीर की स्वस्थता, स्थिरता और शुद्धता मिलती है। शारीरिक तनाव मानसिक तनाव से पैदा होता है। मन जितना खाली होगा उतना १. योगशास्त्र - ४. १२४-१३४
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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