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________________ [ xxviii ] चतुर्थ विभाग ४. दृष्टियोग का आदि बिन्दु तनाव और चरम बिन्दु मुक्ति १५९-१८४. पृष्ठांक १५९-१६६ अध्याय १. दृष्टियोग से अयोग दर्शन इच्छा योग, शास्त्र योग, सामर्थ्य योग, अयोज्यकरण, केवली समुद्घात, शैलेशीकरण, दृष्टियोग, ओघदृष्टि एवं योगदृष्टि । २. दृष्टिओं के विकासक्रम में उत्तरोत्तर संवर्धन मित्रा दृष्टि, योग बीज का प्राप्तिकाल, वंचक विधि, वंचकत्रय का स्वरूप, तारादृष्टि, बलादृष्टि, दीप्रा दृष्टि, धर्म के प्रति प्रीति, तत्त्व श्रवण, समापत्ति, वेद्यसंवेद्यपद, अवेद्यसंवेद्यपद, स्थिरादृष्टि, कान्तादृष्टि, प्रभादृष्टि - आलंबन योग, परादृष्टि, योगी महात्माओं के प्रकार | १. १६७-१८४ पंचम विभाग ५. प्रयोग एक योग अनेक समस्या और समाधान की फलश्रुति में १८५-२५७ १८५-१९३ जड़ बन्धनों से मुक्त होने का परम उपाय - अध्यात्म अध्यात्म योग, अध्यात्म शब्दार्थ, व्युत्पत्ति एवं परिभाषा, अध्यात्म योग का स्वरूप, अध्यात्म योग के भेद | २. बहिर्मुख से अन्तर्मुख चेतना की जागृति का सम्पर्क सूत्र - भावना १९४-२०६ भावनायोग, भावव्युत्पत्यर्य, भावशब्दार्थ एवं परिभाषा । समभावना मैत्री भावना, प्रमोद भावना, नमस्कार मन्त्र और प्रमोद भावना, भाव नमस्कार और प्रमोद भावना, प्रमोद भावना और योगबीज, कारूण्य भावना, भावना की उपलब्धि-प्रयोग और परिणाम से, माध्यस्थ भावना, जिनकल्प भावना, जिनकल्प भावना के प्रकार । संवेग भावना, संवेग भावना के प्रकार, पदार्थों का अनित्यता, अनित्य भावना का चिन्तन । निर्वेद भावना, पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएँ।
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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