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________________ २५२ / योग- प्रयोग- अयोग अनिवृत्तिकरण का यह असंख्यातवाँ भाग है। यहाँ जीव अपूर्वकरण का आवेग होने से . स्थिति और रस का घात करता है और गुण श्रेणी पर आरूढ़ होता है। यहाँ साधक का नया आयाम खुलता है और वीतराग अवस्था प्राप्त होती है। इस प्रकार स्थूल शरीर के प्रभाव से स्थूल ग्रंथियों और सूक्ष्म शरीर के प्रभाव से सूक्ष्म ग्रंथियों का परिवर्तन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर पाया जाता है । अनाहत चक्र मणिपुर चक्र ३ २ स्वाधिष्ठान चक्र मूलाधार चक्र योग प्रयोग आज्ञा चक्र विशुद्धि चक्र '६ आकृति नं. १७ सहस्रार चक्र ७. मोक्ष ६. शैलेशीकरण ५. कैवल्य प्राप्ति ७ २. सम्यक्त्व १. यथाप्रवृत्तिकरण आध्यात्मिक प्रयोग 'पिनियल ग्लैण्ड (Pineal Gland). - पिटयूटरी ग्लैण्ड (Pituitary Gland) ४. समुद्घात अयोज्यकरण ३. अपूर्व करण . थॉयराइड ग्लैण्ड (Thyroid Gland) थाइमस ग्लैण्ड (Thymus Gland) सोलार प्लेक्सस (Solar Plexus ) • एड्रिनल ग्लैण्ड (Adrenal Gland ) पेल्विक में स्थित गोनाड्स ग्रंथि वैज्ञानिक प्रयोग जपयोग और मंत्रयोग का शरीर, इन्द्रियवृत्ति और मन पर प्रभाव जप और मन्त्र का शरीर के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । मन्त्रोच्चार की आवश्यकतानुसार यदि जप होवे तो विक्षिप्त मन सुलीन हो जाता है। शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण से ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं और आकाशीय प्रकपनों में तीव्रता लाती हैं अतः प्राथमिक भूमिका पर जप ही करना आवश्यक है। जप के तीन आयाम हैं
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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