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________________ [ xx ] शताब्दी वर्ष में प्रेरणा को साकार रूप मिले यह भी आचार्यप्रवर के अनुग्रह की साक्षात् परिणति है। मेरे अचेतन मन के रहस्यों को अनावृत्त कर नये सन्दर्भो को सदा प्रस्तुत करने वाले मेरे गुरुयुगल आत्मार्थी श्री मोहन ऋषि जी म. सा. प्रवर्तक श्री विनय ऋषि जी म स. , परम वत्सला मातृस्वरूपा गुरुमाता शासन चन्द्रिका श्री उज्ज्वल कुमारी जी म. स. को प्रणाम करती हूँ । साथ ही रत्नों में एक रत्नसम पू. माणिक कुंवर जी म. स. तथा प्रज्ञाशील प्रभाकुंवर जी म.स. के चरणों में भाव-पुष्प अर्पण करती हूँ जो इस परिणति के मूल स्रोत रहे हैं। इन विभूतियों द्वारा मेरी अनुभूति को अभिव्यक्ति मिली। निराकार चेतना में योग साकार हुआ, योग का प्रयोग से अनुबन्ध हुआ, अयोग के अनुशीलन का सम्बन्ध हुआ । मेरे धन्यवाद के पात्र सदा सर्वदा सहयोगिनी साध्वीरत्ना श्री दिव्यप्रभा जी एवं अनुपमा जी, तथा बोम्बे कांदावाडी, कांदीवली आदि श्री संघ गीरीशभाई, किशोरभाई कोठारी, प्रताप भाई मेहता आदि की सहृदय आभारी हूँ। साधना ही जिनका जीवन था ऐसे विरक्त साधक संसारी पिता चन्दुलाल भाई और माता सुशीलादेवी की ज्योति से मेरी साधना की ज्योति प्रज्ज्वलित हुई और मेरा साधना पंथ प्रशस्त बना । शोध प्रबन्ध की सम्पन्नता (१९८१) में पूर्ण हो चुकी थी किन्तु अनुयोग प्रवर्तक मुनिश्री कन्हैयालाल जी "कमल" का अनुयोग का महाशोध कार्य प्रारम्भ होने से अनेक संघों का व्यक्तियों का और विद्वदगणों का अति आग्रह होने पर भी प्रकाशन हेतु मैं विरक्त रही। किन्तु फिर भी युग की मांग ने आज पुनः प्रकाशन हेतु कदम उठाया अतः मैं रोक ना पाई । "जैन दर्शन में योगः एक समालोचनात्मक अध्ययन" नामक मेरा शोध प्रबन्ध ७३९ पृ. का महाविस्तृत रूप होने से उसे "योग प्रयोग अयोग" नामक २५७ पृ. में समाविष्ठ करने का मैंने साहस किया है। हो सके इतना विषय को न्याय दिया है तदपि ---परमात्मा की कृपा से प्रस्तुत ग्रंथ में किसी भी प्रकार की त्रुटि रही हो तो श्रुतदेव से क्षमा चाहती हूँ। आज याद भरी प्रीत में विश्राम के धाम को प्रणाम कर कलम को विराम देती हूँ और मंगल कामना करती हूँ कि परमयोगी आदिश्वर की अयोग साधना, आचार्य की प्रयोग प्रेरणा और परम गुरुवरों की योग चेतना रूप पुण्यबल आप सभी के अयोग मार्ग का विमोचन एवं संयोजन करे । - साध्वी मुक्तिप्रभा
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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