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दृष्टि योग से अयोग दर्शन
१. साधना का प्रवेश द्वार - इच्छायोग स्वाभाविक संरक्षा की क्षमता-शास्त्रयोग
आत्मवीर्य के अंतिम चरण की दो रेखा(i) धर्म संन्यास
(ii) योग संन्यास २. औघदृष्टि और योगदृष्टि की भेद रेखा ३. दृष्टिओं से रूपान्तरण
१. विवेक का अभाव, २. अज्ञानता होने पर भी गुणानुरागी के प्रति जिज्ञासा, ३. योग उपाय का प्रथम चरण, ४. समापत्ति का प्रादुर्भाव, ५. आत्मानुभव का आस्वादन, ६. आत्मसंप्रेक्षण, आचार शुद्धि, एकाग्र बुद्धि और स्थिरीकरण का प्रारम्भ ७. तत्त्वप्रतिपत्ति, विवेक ज्ञान विशुद्धि और असंगानुष्ठान की प्राप्ति,
८. अनाशक्ति की संप्राप्ति, निर्विकल्प की प्राप्ति और निर्वाण का आनन्द । ४. चौदह गुणों का क्रमारोह