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________________ प्रस्तुति सक्रियता से निष्क्रियता, गतिशीलता से स्थिरता, अनित्यता से नित्यता और योग से अयोग की भेद रेखा है प्रयोग । जीवन से सम्बन्धित कोई भी घटना में घटित हो जाना पर्याप्त नहीं है किन्तु घटित घटना से जुड़ जाने पर पृथक् कैसे होना महत्त्व रखता है। घटित घटना से जुड़ जाना योग है और घटना से पृथक् हो जाना अयोग है किन्तु रूपान्तरण का माध्यम है प्रयोग । योग शरीर, मन और वाणी का परस्पर समन्वय परमाणुओं की एक अद्भुत संरचना है। दृश्यमान शरीर स्थूल है। स्थूल शरीर से वाणी सूक्ष्म है और वाणी से मन सूक्ष्म है। प्रयोग जड़-चैतन्य का अभेदिकरण भेदविज्ञान प्रयोग से होता है जैसे- दूध में घी विद्यमान है । किन्तु जैसे दूध से दही, दही से मक्खन और मक्खन से घी का प्रयोगात्मक रूप से निर्माण होता है वैसे ही शरीर में आत्मा विद्यमान है; प्रयोगात्मक रूप से ही दोनों का पृथक्करण होता है। अयोग पृथक्करण दो स्वरूप में विद्यमान है - अनुभूति और प्राप्ति । देह होने पर भी देहातीत दशा अनुभूतिपरक है और देहातीत सिद्धावस्था प्राप्तिपरक है । इस प्रकार योग सर्व सामान्य किसी भी दृष्टि विशेष का माध्यम या परिचायक नहीं है किन्तु रूपांतरण की प्रयोगात्मक प्रक्रिया है। जिस साधक ने योग को प्रयोग की कसौटी पर कसा है उसके लिए योग अयोग की प्राप्ति का परम उपाय, मुक्ति की उपलब्धि का महत्त्वपूर्ण साधन और आत्मा से परमात्मा बनने का अपूर्व आनन्द रूप धाम है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के मुख्य दो उद्देश्य हैं- प्रथम आगम और साहित्य का अध्ययन कर निज अनुभूति से उसका अनुसंधान पाना तथा उपलब्ध अनुशीलन से योग विधि का प्रयोग दर्शाना ।
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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