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________________ १०० / योग- प्रयोग- अयोग पर आरूढ़ होता है तथा मन, वचन, काया का निरोध होने से शैलेशीकरण की अवस्था में स्थित होता है। परम समाधि-निर्विकल्प समाधि में स्थित साधक परम समाधि को प्राप्त करता है। निर्विकल्प दशा चतुर्थ गुणस्थान से प्रारम्भ होकर तेरह-चौदहवे गुणस्थान में पूर्ण होती है। तेरहवें गुणस्थान में स्थित साधक पूर्व कोटी तक परम समाधि में स्थित रहता है I संयम, नियम और तप तथा धर्मध्यान और शुक्लध्यान जो आत्मा ध्याता है, उसे परम समाधि कहते हैं । वीतराग भाव से युक्त निर्विकल्प समाधि कैवल्यज्ञान का बीज है। परम समाधि से अज, अविनाशी, अजर, अमर, निराबाध, निरंजन, निराकार, परम, अरूपी, चैतन्य स्वरूप की रमणता होती है। साक्षात्कार के अनन्तर सालंबन ध्यान की अपेक्षा निरालंबन ध्यान में विशेष अनुभव होता है। यह आत्मा की सहज दशा है। आलंबन समाधि की अपेक्षा निरालंबन समाधि में अनंत गुण उत्तमता, अनन्तगुण कर्म निर्जरा एवं अनन्तगुण शक्ति की प्रभुता प्राप्त होती है T जैनागमों में सिद्धावस्था प्राप्त होने से पूर्व चौदहवें गुणस्थान में अयोगी अवस्था होती है। यह अवस्था शुक्लध्यान की सर्वोत्कृष्ट अवस्था है। इस अवस्था में समाधि की आवश्यकता ही नहीं रहती। महर्षि पतञ्जलि ने योगांगरूप से जिस समाधि का उल्लेख किया है वह तो जैन दर्शन के अनुसार शुक्लध्यान के आरम्भ से ही प्राप्त हो जाती है। और ध्यान तथा समाधि में जो अन्तर बतलाया है वह भी शुक्ल ध्यान के प्रथम और दूसरे चरण में ही अन्तर्निहित हो जाता है। अतः महर्षि पतञ्जलि का समाधियोग शुक्लध्यान का ही दूसरा नाम है। संप्रज्ञात-समाधि प्रथम शुक्लध्यान का प्रायः रूपान्तर ही है और द्वितीय भेद शुक्लध्यान में असम्प्रज्ञात -समाधि का अन्तर्भाव हो जाता है । अतः मोक्ष का उपायभूत धर्म व्यापार जो कि योग के नाम से प्रसिद्ध है वह मुख्यतया शुक्लध्यान ही है और महर्षि पतञ्जलि की योग की चित्तवृत्तिनिरोध व्याख्या भी इसमें सम्यग्रुप से संघटित होती है तथा अशुद्धि का नाश और ज्ञान का प्रकाश भी इसके द्वारा भलीभाँति सम्पादित होता है। एवं योग के यम-नियमादि अन्य साधनों की सफलता भी इसी में पर्यवसित होती है। इसलिये शुक्लध्यान ही परमोत्तम समाधि योग है।
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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