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________________ योग-प्रयोग-अयोग/८७ साहुणं उपाध्याय का हरा वर्ण ऊँ ह्रीं श्रीं नमो बुध का स्पर्श "उवज्झायाणं और साधु का कृष्ण वर्ण ऊँ ह्रीं श्रीं नमो लोएसव्व शनि-राहु-केतु का स्पर्श होता है शुभ लेश्या तेजोलेश्या-पदमलेश्या और शुक्ल लेश्या ये तीन शुभ लेश्या हैं। तीनों लेश्या के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श प्रशस्त हैं। तीनों लेश्या में तेजोलेश्या रक्तवर्ण में होने से तैजस शरीर को उत्तेजित करने में प्रवर्तमान होती है, पद्लेश्या के परमाणु से विषैले कीटाणु नष्ट होते हैं और अशान्त वृत्तियाँ क्रमशः शान्त भाव में परिणयन होती हैं। सर्व वृत्तियों का निरोध होते ही शुक्ललेश्या धर्म और शुक्लध्यान में केन्द्रित होती है। अशुभ लेश्या कृष्ण, नील, कापोत ये तीन अशुभ लेश्या हैं । ये तीनों लेश्या के वर्ण, रस गंध और स्पर्श अप्रशस्त हैं। तीनों लेश्या के कृष्णादि वर्ण अति तीव्र होते हैं। कलुसित भाव भी सदा विद्यमान रहते हैं फलतः ईर्ष्या, वैर, विरोध, घृणा, भय छाया हुआ रहता है। आर्त और रौद्र ध्यान होने से अशान्ति बनी रहती है। क्रोध, भय, काम आदि की वृत्तियाँ नाभ के पास जो एड्रिनल ग्रंथि है उससे उत्तेजित होती है, जब ऊर्जा नाभि के आसपास घूमती है तब तीनों वृत्तियाँ उत्तेजित हो उठती हैं और तीनों लेश्या से विशेष रूप में वेष्ठित होती हैं । अतः साधना के माध्यम से अशुभ लेश्या का शुभलेश्या में रूपान्तरण होता है। कोष्ठक नं. ५ लेश्या अशुभ लेश्या शुभ लेश्या कृष्ण, नील, कापोत तेजो, पद्म,शुक्ल अप्रशस्त प्रशस्त वर्ण-कृष्ण, नील, कापोत रस-अत्यन्त, कटु गंध-तीव्र दुर्गंध स्पर्श-ठंड, रूक्ष, कर्कश वर्ण-रक्त, पीत; श्वेत रस-अत्यन्त मीठा गंध-तीव्र सुगन्ध स्पर्श-गर्म, मृदु, चिकना
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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