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________________ ८२/योग-प्रयोग-अयोग स्पर्शना है। भावों की स्पर्शना से जाना जाता है कि व्यक्ति का आचरण कैसा है। यदि व्यक्ति क्रोधी है, मायावी है, अनेक विषमताओं को फैलाने वाला है तो उसके स्पर्श में रौद्र परिणाम परिणमन होता है। यदि व्यक्ति पवित्र भाव वाला है तो प्रेम, स्नेह सहानुभूति के व्यापक परिणाम का स्पर्श होगा। प्रेम के स्पर्श में आनन्द होता है। उत्साह बढ़ता है, सामर्थ्य जागता है और आन्तरिक निर्मलता का रूपान्तरण होता है। जंगल के शान्त वातावरण में, प्राकृतिक सौन्दर्य की विश्व शान्ति में, रुचि के अनुकूल, साधन, सामग्री का चयन होने से अनुकूल स्पर्श परमाणु का परिणमन होता है। यही परिणाम जब आन्तरिक भाव में रूपान्तरण होता है तब उसी रूपान्तरण के केन्द्र बिन्दु को शुभ लेश्या कहते हैं। शुभलेशी स्पर्श का शरीर मन, भाव और अध्यात्म पर विशेष प्रभाव रहा है। इस प्रभाव से भिन्न-भिन्न स्थान पर भिन्न-भिन्न स्पर्श का अनुभव होता है। स्पर्श हल्का भी होता है और भारी भी होता है, गरम भी होता है और ठंडा भी होता है, स्निग्ध भी होता है और रुक्ष भी होता है। इसी प्रकार शरीर के भीतर जैसे जिह्वा के अग्र भाग पर प्रकंपनों का स्पर्श अलग होता है, रीड़ की हड्डी में स्थित सुषुम्ना नाड़ी के प्रकंपनों का स्पर्श-संवेदन भिन्न होता है, मूलाधार चक्र और आज्ञा चक्रक में एकाग्रता के क्षणों में और प्रकंपनों के स्पर्श संवेदनों में भिन्नता पायी जाती है। षड्चक्रों पर ध्यान केन्द्रित करने पर स्पर्श संवेदन मूलाधार चक्र पर होता है उससे स्वाधिष्ठान चक्र पर क्या प्रभाव पड़ता है और मणिपुर चक्र तक उस प्रभाव को पहुँचने में कितना समय लगता है, इत्यादि विचार आवश्यक हैं जैसे-शरीर के किसी भी भाग से जब ज्ञान तन्तु अपना प्रभाव मस्तिष्क तक ले जाता है तो मन उस स्थान. का पता शीघ्र प्राप्त कर लेता है, उसे संवेदन का स्थानीयकरण (Localization of Sensation) कहते हैं। स्पर्श और गतियोग स्पर्शयोग गतियोग से जुड़ा हुआ है। शरीर के भीतर मन प्राण वायु, रक्त आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर गत्यात्मक किया जाता है। उस स्थान का स्पर्श देखा जाय तो प्रतीत होगा कि मन कितने समय तक एक स्थान पर टिक सकता है। जैसे-बाह्य ध्यान में पुलिस सिपाहियों को कवायत सिखाई जाती है। केवल एक शब्द पर एक साथ सभी का भागना, कूदना, बैठना, उठना, बन्दूक चलाना इत्यादि प्रक्रिया एक साथ हो जाती है। ठीक उसी प्रकार भीतर का यन्त्र-मन्त्र, श्वास, त्राटक आदि कोई भी आलंबन के स्पर्श होते ही सम्पूर्ण शरीर के प्रकम्पनों के स्तर पर गति करता है।
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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