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________________ २. लेश्या से रासायनिक बदलते रूप योग और लेश्या मन के अध्यवसाय एक जैसे नहीं होते। वे बदलते रहते हैं । कभी अच्छे होते हैं तो कभी बुरे । मन के इन परिणामों अथवा भावों को "लेश्या" कहते हैं। स्फटिक के समीप जिस रंग की वस्तु रखी जाये उसी रंग से युक्त स्फटिक देखा जाता है, इसी प्रकार भिन्न-भिन्न प्रकार के संयोग से मन के परिणाम (अध्यवसाय) बदला करते हैं । मनुष्य को जब क्रोध आता है, तब उसके मनोगत भाव का प्रभाव उसकी मुखाकृति पर उभर कर आता है। उस क्रोध के अणुसंधान का मानसिक आन्दोलन जो उसके मुखाकृति पर घूम रहा है, उसी की यह अभिव्यक्ति है। भिन्न-भिन्न अणुसंघात के योग से मन पर भिन्न-भिन्न प्रभाव अथवा मन के भिन्न-भिन्न परिणाम होते हैं। इसी का नाम लेश्या है। ऐसे अणुसंघात का वर्गीकरण छः प्रकार से किया गया है, जैसे कि कृष्ण वर्ण के नील वर्ण के, कापोत वर्ण के, पीत वर्ण के रक्तवर्ण के तथा शुक्ल वर्ण के द्रव्य । ऐसे द्रव्यों में से जिस प्रकार के द्रव्य का सान्निध्य प्राप्त होता है उसी द्रव्य के अनुरूप रंगवाला मन का अध्यवसाय भी हो जाता है। इसी का नाम लेश्या है । १ आधुनिक वैज्ञानिक खोज में भी यह ज्ञात हुआ है कि मन पर विचारो के जो आन्दोलन होते हैं वे भी रंगयुक्त होते हैं । उपर्युक्त जीवों के आन्तरिक भावों की मलिनता तथा पवित्रता के तरतम भाव का सूचक छः लेश्याओं का विचार जैनशास्त्रों में है, और आजीवकमत के नेता मंखलिपुत्र गोशालक के मत में कर्मों की शुद्धि अशुद्धि को लेकर कृष्ण, नील आदि छः वर्णों के आधार पर कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र, शुक्ल, परमशुक्ल ऐसी मनुष्यों की छः अभिजातियाँ बतलाई गई हैं। ( वौद्धग्रन्थ अनुत्तरनिकाय में इस गोशालक ने श्री महावीर प्रभु की छद्मस्थ अवस्था में उनके शिष्य के रूप में उनका सहचार लगभग छः वर्ष तक रखा था ऐसा उल्लेख है ।) १ : भगवती सूत्र श. १४. उ. ९, प्र १२, पृ. ७०७
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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