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________________ योग-प्रयोग-अयोग/७३ कर्म के दो प्रकार है-सांपरायिक एवं ऐर्यापथिक । कषाय रहित किया जाने वाला कर्म ऐर्यापथिक होता है। सांपरायिक कर्म कषाय सहित किया जाता है। ८. अकर्म वीर्य-जिसमें कर्म नहीं वह अकर्म वीर्य है। वीर्यान्तराय कर्म के क्षय से उत्पन्न जीव का स्वाभाविक सामर्थ्य अकर्म वीर्य है। अकर्म वीर्य में आत्मा कषाय रूप बन्धनों से मुक्त होकर कर्मों का विनाशक होता है । १२. __ इस प्रकार अकर्म वीर्य में आत्मा ध्यानयोग को ग्रहण करता है और काया को अप्रशस्त व्यापार से रोकता हुआ परीषह उपसर्गों को सहन करता है एवं मोक्ष प्राप्ति पर्यन्त संयममय अनुष्ठान में संलीन रहता है। वीर्य का उचित उपयोग कर उपायों द्वारा अंतिम सिद्धि को प्राप्त करना ही अकर्म वीर्य की सात्त्विक सफलता है। निक्षेप वीर्य नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव भेद से छः प्रकार का है। जैन दर्शन के अनुसार वीर्य से सत्-असत् का विवेक होता है, यथार्थ दृष्टि की प्रतीति होती है और सामर्थ्यपूर्ण मनोभाव जागृत होता है। वीर्य में ज्ञान और क्रिया का ऐसा समन्वय है जिससे जीवन और जगत की व्यवस्थाओं का सम्यक् बोध प्राप्त होता है। कर्मों के क्षयोपक्षम से जो वीर्य लब्धि प्राप्त होती है उसने सहज देहात्म बुद्धि को सत्य की वेदी पर समर्पित करने का संकल्प लिया है। फलतः वीर्य से आनन्द के क्षणों का अनन्य लाभ प्राप्त होता है। वीर्य उत्तेजना योग निष्णात महर्षियों के अनुसार हमारे संवेदनों से वीर्य में अदभुत परिवर्तन पाया जाता है क्योंकि हमारी इन्द्रियों के विषयों में न्यूनाधिक उत्तेजनाएँ पायी जाती हैं। जिसका माध्यम है-श्रवप, दृष्टि, रस, गंध, स्पर्श इत्यादि । इसी माध्यम से प्राप्त वीर्य शक्तियाँ वायु कम्पनों से उत्तेजित होती है। जैसे-वायुमंडल में वायु-कम्पन एक से असंख्य संख्या तक प्रति सेकण्ड होते रहते हैं। उनमें से श्रवण वीर्य शक्ति ११ से ६०००० प्रति सेकण्ड कम्पन ग्रहण करती है जिसका सम्बन्ध शब्द संवेदन से है। वायुकम्पन बराबर बढ़ता रहने पर भी उन्हें कोई इन्द्रिय ग्रहण नहीं करती। जब वायुकंपन एक करोड़ अस्सी लाख प्रति सेकण्ड होते हैं तब स्पर्श प्रभावित होता है और उष्णता का संवेदन अनुभव होने लगता है। इसके पश्चात् दूर तक कोई संवेदन . . १२. सूत्रकृतांग सू. ३ से १० १३. सूत्रकृतांग सू. ११ से २६
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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