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________________ CID प्रकाशकीय | योग शब्द का साधना के क्षेत्र में प्रचलित अर्थ है-साधना की विशिष्ट पद्धति जिससे आत्मा का उत्कर्ष हो और परम ध्येय की प्राप्ति हो। जैन दर्शन में "योग" शब्द एक अन्य अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। वहाँ आत्मा से कर्मों के आबद्ध होने को योग कहा है। इस अर्थ भेद के कारण यह भ्रान्ति उत्पन्न होती रही है कि जैनों का योग से विरोध है। किन्तु वास्तव में तो जैन दर्शन एक साधना बहुल दर्शन है और उसमें योग-साधना का महत्त्व प्रत्येक बिन्दु पर है। प्रस्तुत ग्रन्थ में साध्वी श्री मुक्ति प्रभाजी ने योग-साधना से संबंधित जैन वांगमय में से यथा सम्भव सम्पूर्ण सामग्री संकलित कर उसका सैद्धान्तिक, प्रायोगिक तथा आध्यात्मिक दृष्टियों से विश्लेषण किया है। साथ ही इसमें आधुनिक वैज्ञानिक खोज से प्राप्त सूचनाओं का भी सुन्दर समन्वय किया है। प्राकृत भारती योग-साधना विषयक ग्रन्थों की श्रृंखला में हेम चन्द्राचार्य के योगशास्त्र के अंग्रेजी अनुवाद के पश्चात् यह महत्त्वपूर्ण शोध ग्रन्थ अपने पाठकों के समक्ष पुष्प 84 के रूप में प्रस्तुत कर रही है। आशा है पाठकों, विशेषकर साधना में रुचि रखने वाले को यह चिन्तन-मनन को प्रेरित करेगी। साध्वी जी ने वर्ष 1981 में डॉ. बी. बी. रायनाडे के निदेर्शन में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन को शोध ग्रन्थ की प्रस्तुति की थी। हम साध्वी श्री मुक्ति प्रभाजी के प्रति आभार प्रकट करते हैं कि उन्होंने प्रकाशन का अवसर प्राकृत भारती को प्रदान किया। उमरावमल चोरड़िया म. विनय सागर देवेन्द्र राज मेहता अध्यक्ष निदेशक सचिव अ. भा. श्वे. स्था. जैन कॉन्फ्रेन्स प्राकृत भारती अकादमी प्राकृत भारती अकादमी (राजस्थान) (जयपुर) (जयपुर)
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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