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________________ xiv : पंचलिंगीप्रकरणम् सावद्यकर्म से विरत होना, श्रमण स्फोट - विस्फोट, टूटकर बिखरना चारित्र ग्रहण करना स्वजन - परिवार के सदस्य सागरोपम - असंख्यातकाल का स्वभाव - स्वप्रकृति (सागरसम अति विस्तीर्ण) __ स्वरूप - आकृति अनुमान; इसका मान १०५ (दशकोड़ाकोड़ी) पल्योपम तुल्य है स्वर्ग - देवताओं का निवास की भूमियाँ सागार चारित्र - गृहस्थधर्मचर्या . हर्ष - प्रसन्नता सामान्य - अविशेष हल - भूमि जोतने का कृषियंत्र सावध - हिंसक हस्ति - हाथी सास्वादन - अवशेष स्वाद की हीन - निकृष्ट स्थिति सिद्धान्त - धर्म के नीतिनियम हेमयुक्ति - धातुवेध हेय - त्याज्य सुदृष्टि - सम्यग्दृष्टि सुख - मन को भाने वाली अनुभूति सुपात्र - सुयोग्य सूत्र - धर्मग्रंथ, उनका एक सूत्र संकोच - सिकोड़ना संग्राम - युद्ध संतान - संतति संताप - दुःख संवर - कर्मानवनिरोध संविग्न - संवेग प्राप्त संवेग - मोक्ष की तीव्र अभिलाषा स्त्रीबंधक - ऐसे कर्म जिनसे स्त्री के रूप में पुनर्जन्म लेना पड़े स्थावरकाय - अचलजीवाराशि
SR No.023142
Book TitlePanchlingiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Beliya
PublisherVimal Sudarshan Chandra Parmarthik Jain Trust
Publication Year2006
Total Pages316
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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