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१७८ : पंचलिंगीप्रकरणम्
पावट्ठाणेहिंतो
निच्छयणयेण
पापस्थानेभ्यः
निश्चयनयेन
विरई
ववहारसंवरो
9
सेलेसिगाइ
३
विरतिः
शैलेशिकायां
जमणंतरो मुक्खो ।। ६१।।
व्यवहारसंवरः
मोक्षः।। ६१।।
पापस्थानों से विरति से तो, व्यवहारसंवर होता है परोक्ष । निश्चयनय से शैलेशी ही संवृत्त है जहॉ से होता तत्काल मोक्ष ।। ६१ ।।
होइ ।
यदनन्तरः
प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुनादि आस्रवद्वार पापस्थान हैं।
२ शैलेशी अवस्था मोक्ष- साधना का चरम क्षण है ।
संपूर्ण कर्मक्षय से प्राप्त सर्वयोगों का निरोध ही मोक्ष है ।
६१.
व्यवहार संवर पापस्थानों' से विरति रूप व परोक्षत: होता है । निश्चयनय से ( तत्त्वतः या तार्किक दृष्टि से) शैलेशीकरण (मोक्ष - साधना के चरम क्षणों में शैलेश नामक अवस्था ) में ही संवर होता है, जिसके अनन्तर ( तत्काल ) मोक्ष होता है । यहाॅ शास्त्रकार व्यवहार व निश्चय संवर में अन्तर स्पष्ट करते हैं ।
भवति ।