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________________ 76 भद्रबाहुसंहिता के लिए दिये गये और वे किसी कारण से वापस न मिल सके तब वामदेवजी को दुबारा उनके लिए परिश्रम करना पड़ा। जिसके लिए प्रशस्ति का यह वाक्य 'यदि वामदेवजी फेर शुद्ध करि लिखी तैयार करी' खासतौर से ध्यान देने योग्य है और इस बात को सूचित करता है कि उक्त अध्यायों को पहले भी वामदेव जो ने ही तैयार किया था। मालूम होता है कि लेखक ज्ञानभूषणजी धर्मभूषण भट्टारक के परिचित व्यक्तियों में से थे और आश्चर्य नहीं कि वे उनके शिष्यों में भी थे । उनके द्वारा खास तौर से यह प्रति लिखवायी गयी है।" 1 श्रद्धेय मुख्तार साहब के उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट है कि उनकी दृष्टि में यह ग्रन्थ 17वीं शताब्दी का है तथा इसके लेखक ग्वालियर के भट्टारक धर्मभूषण या उनके कोई शिष्य हैं । मुख्तार साहब ने अपने कथन की पुष्टि के लिए इस ग्रन्थ के जितने भी उद्धरण लिये हैं, वे सभी उद्धरण इस ग्रन्थ के प्रस्तुत 27 अध्यायों के बाहर के हैं। 30वां अध्याय जो परिशिष्ट में दिया गया है, इससे उस अध्याय की रचना - तिथि पर प्रकाश पड़ता है । इस अध्याय के आरम्भ में 10वें श्लोक में बताया गया है पूर्वाचार्य प्रोक्तं दुर्गा लादिभिर्यथा । गृहीत्वा तदभिप्रायं तथारिष्टं बदाम्हम् ।। इस श्लोक में दुर्गाचार्य और एलाचार्य के कथन के अनुसार अरिष्टों के वर्णन की बात कही गयी है | दुर्गाचार्य का 'रिष्टसमुच्चय' नामक एक ग्रन्थ उपलब्ध है । इस ग्रन्थ की रचना लक्ष्मीनिवास राजा के राज्य में कुम्भनगर नामक पहाड़ी नगर के शान्तिनाथ चैत्यालय में की गई है । इसका रचनाकाल 21 जुलाई शुक्रवार ईस्वी सन् 1032 में माना गया है । इस ग्रन्थ में 261 गाथाएं हैं, जिनका भाव इस तीसवें अध्याय में ज्यों-का-त्यों दिया गया है । अन्तर इतना ही है कि रिष्टसमुच्चय का कथन व्यवस्थित, क्रमबद्ध और प्रभावक है, किन्तु इस अध्याय की निरूपण शैली शिथिल, अक्रमिक और अव्यवस्थित है । विषय दोनों का समान है । इस अध्याय के अन्त में कतिपय श्लोक वाराही संहिता के वस्त्रच्छेद नाटक 71वें अध्याय से ज्यों-के-त्यों उद्धृत हैं । केवल श्लोकों के क्रम में व्यतिक्रम कर दिया गया है । अतः यह सत्य है कि भद्रबाहुसंहिता के सभी प्रकरण एक साथ नहीं लिखे गये । समग्र भद्रबाहुसंहिता में तीन खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में दस अध्याय हैं, जिनके नाम हैं चतुर्वर्णं नित्यक्रिया, क्षत्रिय नित्यकर्म, क्षत्रियधर्म, कृतिसंग्रह, सीमानिर्णय, दण्डपारसव्य, स्तैन्यकर्म, स्त्रीसंग्रहण, दायभाग और प्रायश्चित्त । इन दशों अध्याय के विषय मनुस्मृति आदि ग्रन्थों के आधार से लिखे गये हैं । कतिपय पद्य तो ज्यों-के-त्यों मिल जाते हैं और कतिपय कुछ परिवर्तन करके ले लिये गये
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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