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________________ 72 भद्रबाहुसंहिता कथन वाराह के कथन से भिन्न है । गृहयुद्ध की चर्चा भ० सं० के 24वें अध्याय में और वाराही संहिता के 17वें अध्याय में आयी है । इस विषय का निरूपण जितना विस्तार के साथ वाराही संहिता में आया है, उतना भद्रबाहु संहिता में नहीं । यद्यपि भद्रबाहू संहिता के इस प्रकरण में 43 श्लोक हैं और वाराही संहिता में 27 श्लोक; पर विषय का प्रतिपादन जितना जमकर वाराही संहिता में हुआ है, उतना भद्रबाहु संहिता में नहीं। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि भद्रबाहु संहिता विषय एवं भाषाशैली की दृष्टि उतनी व्यवस्थित नहीं है, जितनी वाराही संहिता । भद्रबाहु संहिता के दो-चार स्थल विस्तृत अवश्य हैं, पर एकाध स्थल ऐसे भी हैं, जो स्पष्ट नहीं हुए हैं, जहां कुछ और कहने की आवश्यकता रह गयी है। एक बात यह भी है कि भद्रबाहु संहिता में कथन की पुनरुक्ति भी पायी जाती है। छन्दोभंग, व्याकरणदोष, शिथिलता एवं विषय विवेचन में अक्रमता आदि दोष प्रचुर मात्रा में वर्तमान हैं। फिर भी इतना सत्य है कि निमित्तों का यह संकलन किन्हीं दृष्टिगों से वाराही संहिता की अपेक्षा उत्कृष्ट है । स्वप्न निमित्त एवं यात्रा निमित्तों का वर्णन वाराही संहिता की अपेक्षा अच्छा है । इन निमित्तों में विषय सामग्री भी प्रचुर परिणाम में दी गयी है। ____ भद्रबाहु संहिता का ज्योतिष शास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान माना जायगा। 'वसन्तराज शाकुन' और 'अद्भुत सागर' जैसे संकलित ग्रन्थ विषय विवेचन की दृष्टि से आज महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं । इन ग्रन्थों में निमित्तों का सांगोपांग विवेचन विद्यमान है। प्रस्तुत भद्रबाहु संहिता भी जितने अधिक विषयों का एक साथ परिचय प्रस्तुतत करती है, उतने अधिक विषयों से परिचित कराने वाले ग्रन्थ ज्योतिष शास्त्र में भरे पड़े हैं। फिर भी वाराही संहिता के अतिरिक्त ऐसा एक भी ग्रन्थ नहीं है, जिसे हम भद्रबाहुसंहिता की तुलना के लिए ले सकें। जैन-ज्योतिष के ग्रन्थ तो अभी बहुत ही कम उपलब्ध हैं और जो उपलब्ध भी हैं उनका भी प्रकाशन अभी शेष है । अतः जैन-ज्योतिष-साहित्य में इस ग्रन्थ की समता करने वाला कोई ग्रन्थ नहीं है । प्रश्नांग पर जैनाचार्यों ने बहुत कुछ लिखा है, पर अष्टांग निमित्त के सम्बन्ध में इस एक ही ग्रन्थ में बहुत लिखा गया है। ____ अष्टांग निमित्त का सांगोपांग वर्णन इसी अकेले ग्रन्थ में है। अभी इस ग्रन्थ का जितना भाग प्रकाशित किया जा रहा है, उतने में सभी निमित्त नहीं आते हैं । लक्षण और व्यंजन बिल्कुल छूटे हुए हैं । परन्तु इस ग्रन्थ के आद्योपान्त अवलोकन से ऐसा लगता है कि इसके अन्तर्गत ये दो निमित्त भी अवश्य रहे होंगे तथा वास्तु-प्रासाद, मति आदि के सम्बन्ध में भी प्रकाश डाला गया होगा। संक्षेप में हम इतना ही कह सकते हैं कि जनेतर ज्योतिष में वाराही संहिता का जो स्थान
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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