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________________ प्रस्तावना वाराही संहिता में शनि के वर्ण का फलादेश निम्न प्रकार बताया है अण्डजहा रविजो यदि चित्रः क्षुद्भयकृद्यदि पीतमयूखः । शत्रभयाय च रक्तवर्णो भस्मनिभो नहुवैरकरश्च ।। वैदुर्यकान्तिरमल: शुभदः प्रजानां बाणातसीकुसुमवर्णनिभश्च शस्तः । पंचापि वर्णमुपगच्छति तत्सवान सूर्यात्मजःक्षपपतीति मनिप्रवादः ।। -वा० सं०, अ० 10, श्लो० 20-21 भं० सं० में कहा है कि श्वेत शनि का रंग हो तो सुभिक्ष, पाण्डु और लोहित रंग का होने पर भय एवं पीतवर्ण होने पर व्याधि और भयंकर शस्रकोप होता है। शनि के कृष्ण वर्ण होने पर नदियाँ सूख जाती हैं और वर्षा नहीं होती है। स्निग्ध होने पर प्रजा में सहयोग और रूक्ष होने पर प्रजा का शोषण होता है। वाराही--संहिता में यदि शनि अनेक रंग वाला दिखाई दे तो अंडज प्राणियों का नाश होता है। पीतवर्ण होने से क्षुधा और भय होता है। समवर्ण होने से शसभय और भस्म के समान रंग होने से अत्यन्त अशुभ होता है। यदि शनि वैदूर्यमणि के समान कान्तिमान् और निर्मल हो तो प्रजा का अत्यन्त अशुभ होता है। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर दोनों ग्रन्थों के शनिवर्ण फल में पर्याप्त अन्तर है। भद्रबाहुसंहिता में (18, 20, 21, श्लो० में) चन्द्र और शनि के योग का फलादेश बतलाया गया है, जो वाराही संहिता में नहीं है। संयोग फल भ० सं० का महत्त्वपूर्ण है और यह एक नवीन प्रकरण है। वृहस्पति चार का कथन भ० सं० के 17वें अध्याय और वा० सं० के 8वें अध्याय में आया है। निस्सन्देह भद्रबाहुसंहिता का यह प्रकरण फलादेश की दष्टि से वाराही संहिता की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि विस्तार की दृष्टि से वाराही संहिता का प्रकरण भ० सं० की अपेक्षा बड़ा है। एक से निमित्तों का भी फलादेश समान नहीं है। उदाहरण के लिए कतिपय बार्हस्पति-संवत्सरों का फलादेश दोनों ग्रन्थों से उद्धृत किया जाता है माघमल्पोदकं विद्यात् फाल्गुने दुर्भगाः स्त्रियः। चैत्रं चित्रं विजानीयात् सस्यं तोयं सरीसृपाः ।। विशाखा नृपभेदश्च पूर्णतोयं विनिदिशेत् । ज्येष्ठा-मले जलं पश्चाद् मित्र-भेदश्च जायते ॥ आषाढे तोयसंकीर्ण सरीसृपसमाकुलम् । श्रावणे दंष्ट्रिणश्चौरा व्यालाश्च प्रबलाः स्मृताः ।। -भ० सं०, 17 अ. 29-31 अर्थ-माघ नाम का वर्ष हो तो अल्प वर्षा होती है, फाल्गुन नाम का वर्ष
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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