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________________ 470 भद्रबाहुसंहिता मुद्गरसबलछुरिकानाराचखङ्गादिशस्त्रघातेन । चूर्णीकृतनिजबिम्बं पश्यति दिनसप्तकं चायुः ॥ 57u जो व्यक्ति अपनी छाया को मुद्गर, छुरी, बर्फी, भाला, बाण आदि से टुकड़े किये जाते हुए देखता है उसकी आयु सात दिन की होती है |57|| निजच्छाया तथा प्रोक्ता परच्छायापि तादृशी । विशेषोऽप्युच्यते कश्चिद्यो दृष्टः शास्त्रवेदिभिः ॥58 ॥ इस प्रकार निजच्छाया दर्शन और उसके फलाफल का वर्णन किया है। परच्छाया दर्शन का फल भी निजच्छाया दर्शन के समान ही समझना चाहिए । किन्तु शास्त्रों के मर्मज्ञों ने जो प्रधान विशेषताएं बतलायी हैं उनका वर्णन किया जाता 115811 रूपी तरुणः पुरुषो न्यूनाधिकमानवजितो नूनम् । प्रक्षालितसर्वांगो विलिप्यते स्वेन गन्धेन ॥59॥ एक अत्यन्त सुन्दर युवक को जो न नाटा हो न लम्बा हो, स्नान कराके उज्ज्वल सुगन्धित गन्ध लेपन से 'युक्त 115911 अभिमन्त्र्य तस्य कायं पश्चादुक्ते महीतले विमले । छायां पश्यतु स नरो धृत्वा तं रोगिणं हृदये ॥601 उस उत्तम पुरुष के शरीर को पूर्वोक्त - "ॐ ह्रीं रक्ते रक्तप्रिये सिंहमस्तकसमारूढे कूष्माण्डिनीदेवि अस्य शरीरे अवतर अवतर छायासत्यां कुरु कुरु ह्रीं स्वाहा” मन्त्र से मन्त्रित कर स्वच्छ भूमि पर स्थित हो उस व्यक्ति से रोगी का ध्यान कराते हुए छाया का दर्शन करे ||60|| या वा प्राङ्मुखीच्छायार्द्धा वाधोमुखवर्तनी । दृश्यते रोगिणो यस्य स जीवति दिनद्वयम् ॥61॥ जिस रोगी का ध्यान कर छाया का दर्शन किया जाय, यदि छाया टेढ़ी, अधोमुखी, पराङ्मुखी दिखाई पड़े तो वह रोगी दो दिन जीवित रहता है ||61|| हसन्ती कथयेन्मासं रुदन्ती च दिनद्वयम् । धावन्ती विदिनं छाया पादैका च चतुदिनम् ॥26॥ हँसती हुई छाया देखने से एक महीने की आयु, रोती हुई छाया देखने से दो दिन की आयु, दौड़ती हुई छाया देखने से तीन दिन की आयु और एक पैर की छाया देखने से चार दिन की आयु समझनी चाहिए || 62||
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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