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________________ 460 भद्रबाहुसंहिता अग्नि तत्त्व है। यह स्वभावतः पाप ग्रह है, धैर्य तथा पराक्रम का स्वामी है । यह मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है। यह तीसरे और छठे स्थान में बली और द्वितीय स्थान में निष्फल होता है। बुध - उत्तर दिशा का स्वामी, नपुंसक, त्रिदोष प्रकृति, श्यामवर्ण और पृथ्वी तत्त्व है। यह पापग्रह सू०, मं०, रा०, के०, श० के साथ रहने से अशुभ और चन्द्रमा, गुरु और शुक्र के साथ रहने से शुभ फलदायक होता है। इससे वाणी का विचार किया जाता है । मिथुन और कन्या राशि का स्वामी है । गुरु-पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी, पुरुष जाति, पीतवर्ण और आकाश तत्त्व है। यह चर्बी और कफ की वृष्टि करने वाला है। यह धनु और मीन का स्वामी है। शुक्र—दक्षिण-पूर्व का स्वामी, स्त्री, श्याम-गौर वर्ण एवं कार्य कुशल है। छठे स्थान में यह निष्फल और सातवें में अनिष्टकर होता है। यह जलग्रह है, इसलिए कफ, वीर्य आदि धातुओं का कारक माना गया है । वृष और तुला राशि का स्वामी है। शनि-पश्चिम दिशा का स्वामी, नपुंसक, वातश्लेष्मिक, कृष्णवर्ण और वायुतत्त्व है। यह सप्तम स्थान में बली, वक्री या चन्द्रमा के साथ रहने से चेप्टाबली होता है । यह मकर और कुम्भ राशियों का अधिपति है। राहु-दक्षिण दिशा का स्वामी, कृष्णवर्ण और क्रूर ग्रह है। जिस स्थान पर यह रहता है, उस स्थान की उन्नति को रोकता है। केतु-कृष्ण वर्ण और क्रूर ग्रह है। जिस देश या राज्य में क्रूर-ग्रहों का प्रभाव रहता है या क्रूर ग्रह वक्री, मार्गी होते हैं, उस देश या राज्य में दुष्काल, अवर्षा तथा नाना प्रकार के अन्य उपद्रव होते हैं। शुभग्रहों के उदय और प्रभाव से राज्य या देश में शान्ति रहती है। नवीन वस्त्रों का बुध, गुरु और शुक्र को, द्वितीया, पंचमी, सतमी, एकादशी, त्रयोदशी और पूर्णिमा तिथि को तथा अश्विनी, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तरा तीनों, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती नक्षत्र में व्यवहार करना चाहिए । नवीन वस्त्र सर्वदा पूर्वाह्न में धारण करना चाहिए।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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