SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 550
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 452 भद्रबाहुसंहिता है। इस सिद्धान्त के अनुसार स्वप्न में देखी गई कुछ अतृप्त इच्छाएँ सत्य रूप में चरितार्थ होती हैं। क्योंकि बहुत समय से कई इच्छाएं अज्ञात होने के कारण स्वप्न में प्रकाशित रहती हैं और ये ही इच्छाएं किसी कारण से मन में उदित होकर हमारे तदनुरूप कार्य करा सकती हैं। मानव अपनी इच्छाओं के बल से ही सांसारिक क्षेत्र में उन्नति या अवनति करता है, उसके जीवन में उत्पन्न इच्छाओं में कुछ इच्छाएं अप्रस्फुटित अवस्था में ही विलीन हो जाती हैं, लेकिन कुछ इच्छाएं परिपक्वावस्था तक चलती रहती हैं। इन इच्छाओं में इतनी विशेषता होती है कि ये बिना तृप्त हुए लुप्त नहीं हो सकतीं । सम्भाव्य गणित के सिद्धान्तानुसार जब स्वप्न में परिपक्वावस्था वाली अतृप्त इच्छाएं प्रतीकाधार को लिये हुए देखी जाती हैं, उस समय स्वप्न का भावी फल सत्य निकलता है । अवाधभावानुसंग से हमारे मन के अनेक गुप्त भाव प्रतीकों से ही प्रकट हो जाते हैं, मन की स्वाभाविक धारा स्वप्न में प्रवाहित होती है, जिससे स्वप्न में मन की अनेक चिन्ताएं गंथी हुई प्रतीत होती हैं । स्वप्न के साथ संश्लिष्ट मन की जिन चिन्ताओं और गुप्त भावों का प्रतीकों से आभास मिलता है, वही स्वप्न का अव्यक्त अंश भावी फल के रूप में प्रकट होता है । अस्तु, उपलब्ध सामग्री के आधार पर कुछ स्वप्नों के फल नीचे दिये जाते हैं। अस्वस्थ- अपने सिवाय अन्य किसी को अस्वस्थ देखने से कष्ट होता है और स्वयं अपने को अस्वस्थ देखने से प्रसन्नता होती है। जी० एच० मिलर के मत से, स्वप्न में स्वयं अपने को अस्वस्थ देखने से कुटुम्बियों के साथ मेलमिलाप बढ़ता है एवं एक मास के बाद स्वप्नद्रष्टा को कुछ शारीरिक कष्ट भी होता है तथा अन्य को अस्वस्थ देखने से द्रष्टा शीघ्र रोगी होता है। डॉक्टर सी० जे० विटवे के मतानुसार, अपने को अस्वस्थ देखने से सुख-शान्ति और दूसरे को अस्वस्थ देखने से विपत्ति होती है। शुकरात के सिद्धान्तानुसार, अपने और दूसरे को अस्वस्थ देखना रोगसूचक है। विवलोनियन और पृथगबोरियन के सिद्धान्तानुसार, अपने को अस्वस्थ देखना नीरोग सूचक और दूसरे को अस्वस्थ देखना पुत्र-मित्रादि के रोग को प्रकट करने वाला होता है। __आवाज-स्वप्न में किसी विचित्र आवाज को स्वयं सुनने से अशुभ सन्देश सुनने को मिलता है। यदि स्वप्न की आवाज सुनकर निद्रा भंग हो जाती है तो सारे कार्यों में परिवर्तन होने की सम्भावना होती है । अन्य किसी की आवाज सुनते हुए देखने से पुत्र और स्त्री को कष्ट होता है तथा अपने अति निकट कुटुम्बियों की आवाज सुनते हुए देखने से किसी आत्मीय की मृत्यु प्रकट होती है । डॉ० जी० एच० मिलर के मत से आवाज सुनना भ्रम का द्योतक है। ऊपर - यदि स्वप्न में कोई चीज अपने ऊपर लटकती हुई दिखाई पड़े और उसके गिरने का सन्देह हो तो शत्रुओं के द्वारा धोखा होता है। ऊपर गिर जाने
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy