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भद्रबाहुसंहिता
पाप-स्वप्नों की शान्ति के लिए देव, साधुजन बन्धु और द्विजातियों का पूजन और सत्कर्म तथा उपवास करना चाहिए ॥84 ॥
एते स्वप्ना यथोद्दिष्टा: प्रायशः फलदा नृणाम् । प्रकृत्या कृपया चैव शेषाः साध्या निमित्ततः ॥85॥ उपर्युक्त यथा अनुसार प्रतिपादित स्वप्न मनुष्यों को प्रायः फल देने वाले हैं, अवशेष स्वप्नों को निमित्त और स्वभावानुसार समझ लेना चाहिए |18 5 11 स्वप्नाध्यायममुं मुख्यं योऽधीयेत शुचिः स्वयम् ।
स पूज्यो लभते राज्ञो नाना पुण्यश्च साधवः ॥1861
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जो पवित्रात्मा स्वयं इस स्वप्नाध्याय का अध्ययन करता है, वह राजाओं के द्वारा पूज्य होता है तथा पुण्य प्राप्त करता है ||86||
इति प्रन्ये भद्रबाहुके निमित्त स्वप्नाध्यायः षड्विंशोऽध्यायः समाप्तः ||26||
विवेचन - स्वप्नशास्त्र में प्रधानतया निम्नलिखित सात प्रकार के स्वप्न बताये गये हैं :
दृष्ट – जो कुछ जागृत अवस्था में देखा हो उसी को स्वप्नावस्था में देखा
जाय ।
श्रुत - सोने के पहले कभी किसी से सुना हो उसी को स्वप्नावस्था में देखे । अनुभूत - जो जागृत अवस्था में किसी भाँति अनुभव किया हो, उसी को स्वप्न में देखे ।
प्रार्थित — जिसकी जागृतावस्था में प्रार्थना -- इच्छा की हो उसी को स्वप्न में देखे ।
कल्पित - जिसकी जागृतावस्था में कभी भी कल्पना की गयी हो उसी को स्वप्न में देखे | भाविक- -जो कभी न तो देखा गया हो और न सुना गया हो, पर जो भविष्य में घटित होने वाला हो उसे स्वप्न में देखा जाय ।
दोषज - वात, पित्त और कफ के विकृत हो जाने से जो स्वप्न देखा जाय । इन सात प्रकार के स्वप्नों में से पहले पाँच प्रकार के स्वप्न प्रायः निष्फल होते हैं, वस्तुतः भाविक स्वप्न का फल ही सत्य होता है ।
रात्रि के प्रहर के अनुसार स्वप्न का फल - रात्रि के पहले प्रहर में देखे गय स्वप्न एक वर्ष में, दूसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न आठ महीने में ( चन्द्रसेन मुनि
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