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________________ षड्विंशतितमोऽध्यायः 435 स्वप्न में जिस घर में लाक्षारस या रोग अथवा वायु का अभाव देखा जाय उस घर में या तो आग लगती है या चोरों द्वारा शस्त्रघात होता है ।।27।। अगम्यागमनं चैव सोभाग्यस्याभिवद्धये। अलं कृत्वा रसं पीत्वा यस्य वस्त्रयाश्च यद्भवेत् ॥28॥ जो स्वप्न में अलंकार करके, रस पीकर अगम्या गमन–जो स्त्री पूज्य है उसके साथ रमण करना-देखता है, उसके सौभाग्य की वृद्धि होती है ।।28।। शन्यं चतुष्पथं स्वप्ने यो भयं विश्य बुध्यते। पुत्रं न लभते भार्या सरूपं सुपरिच्छदम ॥29॥ स्वप्न में जो व्यक्ति निर्जन चौराहे मार्ग में प्रविष्ट होना देखे, पश्चात् जाग्रत हो जाय तो उसकी स्त्री को सुन्दर, गुणयुक्त पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है ।।29।। वीणां विषं च वल्लकी स्वप्ने गृह्य विबुध्यते। कन्यां तु लभते भार्या कुलरूपविभूषिताम् ॥30॥ स्वप्न में वीणा, वल्लकी और विष को ग्रहण करे, पश्चात् जाग्रत हो जाय तो उसकी स्त्री को सुन्दर रूप गुण युक्त कन्या की प्राप्ति होती है ।। 30।। विषेण म्रियते यस्तु विषं वाऽपि पिबेन्नरः । 'स युक्तो धन-धान्येन वध्यते न चिराद्धि स: ॥31॥ जो व्यक्ति स्वप्न में विष भक्षण द्वारा मृत्यु को प्राप्त हो अथवा विष भक्षण करना देखे वह धन-धान्य से युक्त होता है तथा चिरकाल तक-अधिक समय तक वह किसी प्रकार के बन्धन में बंधा नहीं रहता है ।। 31।। ___उपाचरन्नासवाज्ये मति गत्वाप्यकिञ्चन: । ब्र याद् वै सद्वच: किञ्चिन्नासत्यं वृद्धये हितम् ॥32॥ यदि स्वप्न में कोई व्यक्ति आसव और घृत का पान करता हुआ देखे अथवा अकिंचन--निस्सहाय होकर अपने को मरता हुआ देखे तो इस अशुभ स्वप्न की शान्ति के लिए सत्य वचन बोलना चाहिए; क्योंकि थोड़ा भी असत्य भाषण विकास के लिए हितकारी नहीं होता ॥32॥ 'प्रेतयुक्तं समारूढो दंष्ट्रियुक्तं च यो रथम् । दक्षिणाभिमुखो याति म्रियते सोऽचिरान्नरः ॥33॥ 1. यया मु० । 2. सनि । 3. पुनर्न भवति मु। 4. न भीतो मु० । 5. उपाचरेदासमु० । 6. मतो मु० । 7. -युद्ध मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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