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________________ पंचविंशतितमोऽध्यायः 415 गमन करते हैं तो आढ़क प्रमाण वस्तुओं की बिक्री होती है ।। 44।। गुरु: शुक्रश्च भौमश्च दक्षिणा: सहिता यदा। प्रस्थत्रयं तदा वस्त्रैर्यान्ति मृत्युमुखं प्रजाः ॥45॥ जब गुरु, शुक्र और मंगल दक्षिण में स्थित हों तब धान्य की बिक्री तीन प्रस्थ की होती है और वस्त्र के लिए प्रजा मृत्यु के मुख में जाती है अर्थात् अन्न और वस्त्र का अभाव होता है ।।45॥ उत्तरं भजते मार्ग शुक्रपृष्ठं तु चन्द्रमाः। महाधान्यानि वर्धन्ते कृष्णधान्यानि दक्षिणे ॥46॥ जब शुक्र उत्तर मार्ग में आगे हो और चन्द्रमा के पीछे हो तब महाधान्यों की वृद्धि होती है। यदि यही स्थिति दक्षिण मार्ग में हो तो काले रंग के धान्य वृद्धिंगत होते हैं ॥46॥ दक्षिणं चन्द्रशृंगं च यदा वृद्धतरं भवेत् । महाधान्यं तदा वृद्धि कृष्णधान्यमथोत्तरम् ॥47॥ यदि चन्द्रमा का शृंग दक्षिण की ओर बढ़ता दिखलायी पड़े तो महाधान्य गेहूँ, चना, जौ, चावल आदि की वृद्धि होती है तथा उत्तर शृंग की वृद्धि होने पर काले रंग के धान्य बढ़ते हैं ।।47॥ कृत्तिकानां मघानां च रोहिणीनां विशाखयोः । उत्तरेण महाधान्यं कृष्ण धान्यञ्च दक्षिणे ॥48॥ कृत्तिका, मघा, रोहिणी और विशाखा के उत्तर होने से महाधान्य और दक्षिण होने से कृष्ण धान्य की वृद्धि होती है ।।48॥ यस्य देशस्य नक्षत्रं न पीड़यते यदा यदा। तं देशं भिक्षव: स्फीता: संश्रयेयुस्तदा तदा ॥49॥ जिन-जिन देशों के नक्षत्र ग्रहों के द्वारा जब-जब पीड़ित-घातित न हों तबतब भिक्षुओं को उन देशों में प्रसन्न चित्त होकर जाना चाहिए और वहाँ शान्तिपूर्वक विहार करना चाहिए ।। 49।। धान्यं वस्त्रमिति ज्ञेयं तस्यार्थं च शुभाशुभम् । ग्रहनक्षत्रान् सम्प्रत्य कथितं भद्रबाहुना ॥50॥ 1. प्रस्थक्रयं तदा वस्त्रान्ति मु० । 2. धान्नं तु मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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