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________________ पंचविंशतितमोऽध्यायः 413 भैंस, अजा-बकरी और वस्त्र आदि से धान्य खरीद कर भी बोना नहीं चाहिए। तात्पर्य यह है कि चन्द्रमा की उपर्युक्त स्थिति में अन्न उत्पन्न नहीं होता है; अतः सभी वस्तुओं से अनाज खरीद कर उसका संकलन करना चाहिए ॥31॥ चित्रायां तु यदा शुक्रश्चन्द्रो भवति दक्षिणः । षड्गुणं जायते धान्यं योगक्षेमं च जायते ॥32॥ जब चित्रा नक्षत्र में दक्षिण की ओर शुक्र युक्त चन्द्रमा हो तो छ: गुना अनाज उत्पन्न होता है और योगक्षेम-गुजर-बसर अच्छी तरह से होती है ।। 32।। इन्द्राग्निदेवसंयुक्ता यदि सर्वे ग्रहाः कृशाः। अभ्यन्तरेण मार्गस्थास्तारका यास्तु वाद्यत:2 ॥33॥ कंगु-दार-तिला मुद्गाश्चणकाः षष्टिका: शुकाः । चित्रायोगं न सर्पत चन्द्रमा उत्तरो भवेत् ॥34॥ संग्राह्य च तदा धान्यं योगक्षेमं न जायते। अल्पसारा भवन्त्येते चित्रा वर्षा' न संशय ॥35॥ यदि सभी कमजोर ग्रह विशाखा नक्षत्र में युक्त होकर अभ्यन्तर मार्ग से बादल की ओर की ताराओं में स्थित हों और चन्द्रमा उत्तर होकर चित्रा में स्थित हो, तो कंगु, तिल, मूंग, चना, साठी का चावल आदि धान्यों का संग्रह करना चाहिए। उक्त प्रकार के योग में योगक्षेम में-भोजन-छाजन में भी कमी रहती है। वर्षा अल्प होती है, इसमें सन्देह नहीं है ।।33-35॥ विशाखामध्यगः शुक्रस्तोयदो धान्यवर्धनः। समर्घ यदि विज्ञेयं दशद्रोणक्रयं वदेत् ॥36॥ यदि विशाखा नक्षत्र के मध्य में शुक्र का अस्त हो तो धान्य की उपज अच्छी होती है, अनाज का भाव सम रहता है । दश द्रोण प्रमाण खरीदा जाता है ।।36॥ यायिनौ चन्द्र-शुक्रौ तु दक्षिणामुत्तरो तदा। तारा-विशाखयोर्घातस्तदाऽर्घन्ति चतुष्पदा: ॥37॥ जब यायी चन्द्र और शुक्र दक्षिण और उत्तर में हों और विशाखा की ताराओं का घात हुआ हो तो चौपायों की वृद्धि होती है ॥37॥ दक्षिणेनानुराधायां यदा च व्रजते शशी। अप्रभश्च प्रहीणश्च वस्त्रं द्रोणाय कल्पयेत् ॥38॥ ___1. युक्त: मु० । 2. बाह्यतः मु० । 3. च मु० । 4. वर्गा मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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