SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचविंशतितमोऽध्यायः 411 हों तोधान्य का भाव पाँच द्रोण प्रमाण होता है । पश्चिम में दश आढक और दक्षिण में छः आढक प्रमाण होता है ॥15-17॥ उत्तरेण तु रोहिण्यां चतुष्कं कुम्भमुच्यते। दशकं प्रसंगतो विन्द्यात् दक्षिणेन चतुर्दशम् ॥18॥ यदि उत्तर में रोहिणी हो तो चतुष्क कुम्भ कहा जाता है। इससे दश आढक और दक्षिण में होने से चौदह आढक प्रमाण शाली का भाव कहा गया है ।। 18॥ नक्षत्रस्य यदा गच्छेद् दक्षिणं शुक्र-चन्द्रमाः। सुवर्ण रजतं रत्नं कल्याणं प्रियतां मिथ: ॥19॥ जब शुक्र और चन्द्रमा कृत्ति का विद्ध रोहिणी नक्षत्र के दक्षिण में जायें तब स्वर्ण, चाँदी, रत्न और धान्य महंगे होते हैं ॥19॥ धान्यं यत्र प्रियं विन्द्याद्गावो नात्यर्थदोहिनः ॥ उत्तरेण यदा यान्ति नैतानि चिनुयात् तदा ॥20॥ जब उक्त ग्रह कृत्तिका विद्ध रोहिणी नक्षत्र के उत्तर में जायें तो धान्य महंगा होता है, गायें दोहने के लिए प्राप्त नहीं होती हैं अर्थात् महंगी हो जाती हैं ।।20।। उत्तरेण तु पुष्यस्य यदा पुष्यति चन्द्रमा:। भौमस्य दक्षिणे पार्वे मघासु यदि तिष्ठति ॥21॥ मालदा मालं वैदेहा यौधेयाः संज्ञनायकाः । सुवर्ण रजतं वस्त्रं मणिमुक्ता तथा प्रियम् ॥22॥ जब चन्द्रमा उत्तर से पुष्य नक्षत्र का भोग करता है तथा मघा में रहकर मंगल का दक्षिण से भोग करता है, तब काली मिर्च, नमक, सोना, चाँदी, वस्त्र, मणि, मुक्ता एवं मशाले के पदार्थ महंगे होते हैं ।।21-22।। चन्द्रः शुक्रो गुरुभौमो मघानां यदि दक्षिणे। वस्त्रं च द्रोणमेषं च निदिशेन्नात्र संशयः ॥23॥ चन्द्र, शुक्र, गुरु और मंगल यदि मघा के दक्षिण में हों तो वस्त्र महंगे होते हैं और मेघ द्रोण प्रमाण वर्षा करते हैं, इसमें सन्देह नहीं है ।।23।। आरुहेद वालिखेद्वापि चन्द्रश्चैव यथोत्तरम। ग्रहैर्युक्तस्तु (वर्षति) तदा कुम्भं तु पञ्चकम् ॥24॥ 1. मियुः। 2. युज्यति मु०। 3. स्सोमो मु० । 4. आहट्टालिश्च वापी च भद्र चव यदोत्तरे मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy