SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भद्रबाहु संहिता ग्रहयुद्ध में यदि पीतवर्ण का ग्रह पीतवर्ण के ग्रह का घात करे तो वैश्य और नागरिकों में आपस में मतभेद होता है || 201 402 कृष्णः कृष्णं यदा हन्यात् ग्रहं ग्रहसमागमे । शूद्राणां नागराणाञ्च मिथो भेदं तदादिशेत् ॥21॥ ग्रहयुद्ध में कृष्णवर्ण का ग्रह कृष्णवर्ण के ग्रह का घात करे तो शूद्र और नागरिकों में परस्पर मतभेद होता है || 2 1।। श्वेतो नीलश्च पीतश्च कपिलः पद्मलोहितः । विपद्यते यदा वर्णो नागराणां तदा भयम् ॥22॥ श्वेत, नील, पीत, कपिल और पद्म-लोहित वर्ण के ग्रह जब युद्ध करते हैं तो नागरिकों को भय होता है ॥22॥ श्वेतो वाऽत्र यदा पाण्डुग्रहं सम्पद्यते स्वयम् । यायिनां विजयं ब्रूयाद् भद्रबाहुवचो यथा ॥23॥ श्वेत वर्णं का ग्रह जब पाण्डुवर्ण के ग्रह के साथ युद्ध करता है, तब यायियों की विजय होती है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ॥23॥ कृष्णो नीलस्तथा श्यामः कापोतो भस्मसन्निभः । विपद्यते यदा वर्णो न तदा यायिनां भयम् ॥24॥ कृष्ण, नील, श्याम, कापोत और भस्म के तुल्य आभा वाला ग्रह जब युद्ध करता है तब यायियों को भय नहीं होता है ॥24॥ एवं शिष्टेषु वर्णेषु नागरेषु विचारतः । उत्तरमुत्तरा वर्णा यायिनामपि निर्दिशेत् ॥25॥ अविशिष्ट वर्ण के नागरिक ग्रहों में विचार करने से उत्तर वर्ण के ग्रह यायियों की उत्तर विजय प्रकट करते हैं ॥25॥ रक्तो वा यदि वा नीलो ग्रहः सम्पद्यते स्वयम् । नागराणां तदा विन्द्यात् जयं वर्णमुपस्थितम् ॥26॥ रक्त या नील ग्रह जब स्वयं विपत्ति को प्राप्त हो – युद्ध करे तो नागरिकों की विजय होती है ॥26॥ 1. अनयं घोरं यायिनां चैवमादिशत् मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy