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प्रकाशकीय
'भद्रबाहुसंहिता' फलित ज्योतिष के अन्तर्गत अष्टांग-निमित्त का प्रतिपादन करने वाला एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। निमित्तशास्त्रविदों की मान्यता है कि प्रत्येक घटना के घटित होने से पहले प्रकृति में कुछ विकार उत्पन्न होते देखे जाते हैं जिनकी सही-सही पहचान से व्यक्ति भावी शुभ-अशुभ घटनाओं का सरलतापूर्वक परिज्ञान कर सकता है । प्रस्तुत ग्रन्थ में उल्कापात, परिवेष, विद्युत्, अभ्र, सन्ध्या, मेघ, वात, प्रवर्षण, गन्धर्वनगर, मेघगर्भलक्षण, उत्पात, ग्रहचार, ग्रहयुद्ध, स्वप्न, मुहूर्त, तिथि, करण, शकुन आदि निमित्तों के आधार पर व्यक्ति, समाज, शासन, राज्य या राष्ट्र की भावी घटनाओं-वर्षण-अवर्षण, सुभिक्ष-दुभिक्ष, सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, जय-पराजय आदि इष्ट-अनिष्ट की सूचक बातों का प्रतिपादन किया गया है। इस प्रकार के ज्ञान से व्यक्ति घटनाओं के घटित होने से पूर्व ही सचेत होकर, परिस्थितियों के अनुकूल चलकर अपने लौकिक जीवन को सफल बना सकता है।
निमित्तशास्त्र ग्रह-नक्षत्र आदि गतिविधियों का वर्तमान एवं भावी क्रियाओं के साथ कारण-कार्य सम्बन्ध स्थापित करता है। लेकिन यह ध्यान रहे कि ये प्राकृतिक कारण किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के इष्ट-अनिष्ट का स्वयं सम्पादन नहीं करते हैं, अपितु इष्टानिष्ट के रूप में घटित होने वाली भावी घटनाओं की मात्र सूचना देते हैं । ऐसे ही सूचक निमित्तों का प्रतिपादन करता है यह ग्रन्थ-'भद्रबाहुसंहिता'। ___'भद्रबाहुसंहिता' दिगम्बर जैन परम्परा के प्रसिद्ध आचार्य श्रुतकेवली भद्रबाहु की रचना न होकर निमित्तशास्त्र सम्बन्धी पारम्परीण कृतियों में प्रतिपादित विषय के आधार पर ग्यारहवीं-बारहवीं शती के भद्रबाहु नामक किसी विद्वान् द्वारा रचित या संकलित कृति मानी गई है । विषय का विवेचन और भाषा-शैली के आधार पर कुछेक विद्वानों ने तो इसे उत्तर-मध्यकाल का मात्र एक संग्रह-ग्रन्थ कहा है।
इस ग्रन्थ की मूल भाषा संस्कृत में कतिपय अशुद्धियाँ हैं जिनके कारण उनकी पूर्वापर असंगति के साथ हिन्दी अनुवाद भी सदोष हो गया लगता है। नये