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________________ 400 भद्रबाहुसहिता नागरे तु हते विन्द्यान्नागराणां महद्भयम् । एवं यायिवधे ज्ञेयं यायिनां तन्महद्भयम् ॥7॥ नगर संज्ञक ग्रहों के युद्ध होने या घातित होने से नागरिकों को महान् भय होता है एवं यायो ग्रहों के युद्ध होने पर यायियों-आक्रमकों के लिए महान् भय होता है ।।7। हस्वो विवर्णो रूक्षश्च श्यामः कान्तोऽपसव्यगः। विरश्मिश्चाप्यरश्मिश्च हतो ज्ञेयो ग्रहो युधि ॥8॥ युद्ध में विकृत रश्मि या अल्प रश्मि वाला ग्रह हस्व, विवर्ण, रूक्ष, श्याम, कान्त, अपसव्य दिशा में रहने पर हत-घातित माना जाता है । अर्थात् पराजय और हानि करने वाला होता है ।।8।। स्थूलः स्निग्ध: सुवर्णश्च सुरश्मिश्च प्रदक्षिणः । उपरिष्टात् प्रकृतिमान् ग्रहो जयति तादृशः ॥9॥ स्थूल, स्निग्ध, सन्दर, अच्छी रश्मियों वाला, प्रदक्षिण, ऊपर रहने वाला और कान्तिमान् ग्रह जय को प्राप्त होता है ।।9॥ उल्कादयो 'हतान् हन्यु गरान् संयुगे ग्रहान् । नागराणां तदा विन्द्याभयं घोरमुपस्थितम् ॥10॥ जब युद्ध में नागर ग्रह उल्कादि के द्वारा घातित हों तो नागरिकों को अत्यन्त भय होता है ।। 100 यायिनो वामतो हन्युग्रहयुद्धे विमिश्रकाः। पीड्यन्ते भौमपीडायां भयं सर्वत्र संयुगे ॥11॥ युद्ध में यदि विमिश्रक-उल्का, तारा, अशनि आदि के द्वारा यायी संज्ञक ग्रह बायीं ओर से पीड़ित किये जाये तो भौम पीडा द्वारा पीड़ित होते हैं ॥11॥ सौम्यजातं तथा विप्राः सोम-नक्षत्र-राशयः। उदीच्याः पार्वतीयाश्च पाञ्चलाधास्तथैव च ॥12॥ पीड्यन्ते सोमघातेन नमो धूमाकुलं भवेत्। . तन्नामधेयास्तद्भक्ता: सर्वे पोड्यन्ते तान्समान् ॥1॥ यदि चन्द्रमा के द्वारा ग्रह पीड़ित हों और आकाश धूम से व्याप्त हो तो 1. हरा मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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