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________________ त्रयोविंशतितमोऽध्यायः 397 प्रशासकों एवं अन्य अधिकारियों में अनेक प्रकार के उपद्रव होने से संघर्ष होता रहता है । देश में अशान्ति होती है तथा नये-नये प्रकार के झगड़े उत्पन्न होते हैं । चन्द्रमा की आकृति विशाल हो तो धनिकों के यहाँ लक्ष्मी की वृद्धि, स्थूल हो तो सुभिक्ष, रमणीय हो तो उत्तम धान्य उपजते हैं । यदि चन्द्रमा के शृग को मंगल ग्रह ताडित करता हो तो कुत्सित राजनीतिज्ञों का विनाश, यथेष्ट वर्षा, पर फसल की उत्पत्ति का अभाव और शनि ग्रह के द्वारा चन्द्रशृग आहत हो तो शस्त्रभय और क्षुधा का भय होता है । बुध द्वारा चन्द्रमा के शृंग को आहत होने पर अनावृष्टि, दुर्भिक्ष एवं अनेक प्रकार के संकट आते हैं। शुक्र द्वारा चन्द्रशृग का भेदन होने से छोटे दर्जे के शासन अधिकारियों में वैमनस्य, भ्रष्टाचार और अनीति का सामना करना पड़ता है । जब गुरु द्वारा चन्द्रशृग छिन्न होता है, तब किसी महान नेता की मृत्यु या विश्व के किसी बड़े राजनीतिज्ञ की मत्यु होती है। __कृष्ण पक्ष में चन्द्रशृग का ग्रहों द्वारा पीडन हो तो मगध, यवन, पुलिन्द, नेपाल, मरु, कच्छ, सुरत, मद्रास, पंजाब, काश्मीर, कुलूत, पुरुषानन्द और उशी. नर प्रदेश में सात महीनों तक रोग व्याप्त रहता है। शुक्ल पक्ष में ग्रहों द्वारा चन्द्रशृग का छिन्न होना अधिक अशुभ नहीं होता है। यदि बुध द्वारा चन्द्रमा का भेदन होता हो तो मगध, मथुरा और वेणा नदी के किनारे बसे हुए देशों को पीड़ा होती है। केतु द्वारा चन्द्रमा पीड़ित होता हो तो अमंगल, व्याधि, दुर्भिक्ष और शस्त्र से आजीविका करनेवालों का विनाश होता है। चोरों को अनेक प्रकार के कष्ट सहन करने पड़ते हैं। राहु या केतु से ग्रस्त चन्द्रमा के ऊपर उल्का गिरे तो अशान्ति रहती है। यदि भस्मतुल्य रूखा, अरुणवर्ण, किरणहीन, श्यामवर्ण, कम्पायमान चन्द्रमा दिखलाई दे तो क्षुधा, संग्राम, रोगोत्पत्ति, चोरभय और शस्त्रभय आदि होते हैं। कुमुद, मृणाल और हार के समान शुभ्रवर्ण होकर चन्द्रमा नियमानुसार प्रतिदिन घटता-बढ़ता है तो सुभिक्ष, शान्ति और सुवृष्टि होती है । प्रजा आनन्द के साथ रहती है तथा सन्तापों का विनाश होकर पूर्णतया शान्ति छा जाती है। द्वादश राशियों के अनुसार चन्द्र फल-मेष राशि में चन्द्रमा के रहने से सभी धान्य महंगे; वष में चन्द्रमा के होने से चना तेज, मनुष्यों की मत्यु और चोरभय; मिथुन में चन्द्रमा के रहने से बीज बोने में सफलता, उत्तम धान्य की उत्पत्ति; कर्क में चन्द्रमा के रहने से वर्षा; सिंह में रहने से धान्य का भाव महंगा; कन्या में रहने से खण्डवृष्टि, सभी धान्य सस्ते; तुला में चन्द्रमा के रहने से थोड़ी वर्षा, देशभंग और मार्गभय; वृश्चिक में चन्द्रमा के रहने से मध्यम वर्षा, ग्रामनाश, उपद्रव, उत्तम धान्य की उत्पत्ति; धनु राशि में चन्द्रमा के रहने से उत्तम वर्षा, सुभिक्ष और शान्ति; मकर राशि में चन्द्रमा के रहने से धान्यनाश, फसल में नाना प्रकार के रोग, मूसों-टिड्डी आदि का भय; कुम्भ राशि में चन्द्रमा के रहने से अल्प
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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