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________________ 392 भद्रबाहुसंहिता वैश्वानरपथेऽष्टम्यां तिर्यस्थो वा भयं वदेत् । परस्परं विरुध्यन्ते नृपा: प्राय: सुवर्चस: ॥33॥ यदि अष्टमी तिथि को वैश्वानर मार्ग में तिर्यक् चन्द्रमा हो तो शक्तिशाली, तेजस्वी राजाओं में युद्ध होता है ।। 33।। दक्षिणं मार्गमाश्रित्य वध्यन्ते प्रवरा नरा:। चन्द्रस्तुत्तरमार्गस्थः क्षेम-सोभिक्षकारक: ॥34॥ यदि चन्द्रमा दक्षिण मार्ग में हो तो बड़े-बड़े व्यक्तियों का वध होता है, और उत्तर मार्ग में स्थित रहने वाला चन्द्रमा क्षेम और सुभिक्ष करने वाला होता है॥34॥ चन्द्रसूयौं विशृङ्गौ तु मध्यच्छिद्रौ हतप्रभो। युगान्तमिव कुर्वन्तौ तदा यात्रा न सिद्ध्यति ॥35॥ चन्द्रमा और सूर्य विगत शृग, मध्य छिद्र, कान्ति रहित हो तो युगान्त-प्रलय के समान-कार्य करते हैं, उस समय यात्रा अच्छी नहीं मानी जाती है ।। 35।। श्यदैकनक्षत्र-गतौ कुर्यात् तद्वर्णसंकरम् । विनाशं तत्र जानीयाद् विपरीते जयं वदेत् ।।36॥ एक नक्षत्र पर स्थित होकर जहाँ सूर्य और चन्द्र वर्णसंकर-वर्णमिश्रण करें, वहां विनाश समझना चाहिए । विपरीत होने पर जय होती है ।।36।। बहुवोदयको वाऽथ ततो भयप्रदो भवेत् । मन्दघाते फलं मन्दं मध्यमं मध्यमेन तु ॥37॥ शीघ्र उदय को प्राप्त होने वाला चन्द्रमा भयप्रद होता है । मन्दघात होने पर मन्दकल और मध्यम में मध्यमफल होता है ।। 37।। चन्द्रमा: सर्वघातेन राष्ट्रराज्य भयंकरः । तथापि नागरान हन्यात् यदा ग्रहसमागमे ॥38॥ सर्वघात के द्वारा चन्द्रमा सम्पूर्ण राष्ट्र और राज्यों के लिए भयंकर होता है। जब चन्द्रमा अन्य ग्रह के साथ समागम करता है तो नागरिकों का विनाश करता है ।।38॥ नागराणां तदा भेदो विज्ञेयस्तु पराजयः । यायिनामपि विज्ञेयं यदा युद्धं परस्परम् ॥39॥ 1. भवेत् मु० । 2. शस्यते मु० । 3. यस्य मु० । 4. सौष्ट्रजाश्च मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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