SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 484
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 386 भद्रबाहुसंहिता के चन्द्रमा में छत्रभंग होता है । उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और दिल्ली राज्य में अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं । बम्बई और मद्रास में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । तुला की संक्रान्ति में मेष का चन्द्रमा हो तो पांच महीने में व्यापार में लाभ होता है । अन्न की उपज साधारण होती है। जूट, सूत, कपास और सन की फसल साधारण होती है । अतः इन वस्तुओं के व्यापार में अधिक लाभ होता है। वृश्चिक की संक्रान्ति में वृषराशि का चन्द्रमा हो तो तिल, तेल तथा अन्न का संग्रह करना उचित है । इन वस्तुओं के व्यापार में अधिक लाभ होता है । धनु की संक्रान्ति और मिथुन के चन्द्रमा में पांच महीने तक अन्न में लाभ होता है । मकर की संक्रान्ति में कर्क का चन्द्रमा हो तो कुलटाओं का विनाश होता है । कपास, घी, सूत में पांचवें मास में भी लाभ होता है । कुम्भ की संक्रान्ति में सिंह का चन्द्रमा हो तो चौथे महीने में अन्न लाभ होता है । मीन की संक्रान्ति में कन्या का चन्द्रमा होने पर प्रत्येक प्रकार के अनाज में लाभ होता है । अनाज की कमी भी साधारणतः दिखलायी पड़ती है, किन्तु उस कमी को किसी प्रकार पूरा किया जा सकता है। जिस वार की संक्रान्ति हो, यदि उसी वार में अमावस्या भी पड़ती हो तो यह खर्पर योग कहलाता है । यह योग सभी प्रकार के धान्यों को नष्ट करनेवाला है । यदि प्रथम संक्रान्ति को शनिवार हो, दूसरी को रविवार, तीसरी को सोमवार, चौथी को मंगलवार, पाँचवीं को बुध, छठी को गुरुवार, सातवीं को शुक्रवार, आठवीं को शनिवार, नौवीं को रविवार, दसवीं को सोमवार, ग्यारहवीं को मंगलवार और बारहवीं संक्रान्तिको बुधवार हो तो खर्पर योग होता है । इस योग के होने से भी धन-धान्य और जीवजन्तुओं का विनाश होता है । यदि कार्तिक में वृश्चिक की संक्रान्ति रविवारी हो तो श्वेत रंग के पदार्थ महँगे, म्लेच्छों में रोग - विपत्ति एवं व्यापारी वर्ग के व्यक्तियों को भी कष्ट होता है । चैत्र मास में मेष की संक्रान्ति मंगल या शनिवार की हो तो अन्न का भाव तेज, गेहूं, चने, जो आदि समस्त धान्यों का भाव तेज होता है । सूर्य का क्रूर ग्रहों के साथ रहना, या क्रूर ग्रहों से विद्ध रहना अथवा क्रूर ग्रहों के साथ सूर्य का वेध होना, वर्षा, फसल, धान्योत्पत्ति आदि के लिए अशुभ है। सूर्य यदि मृदु संज्ञक नक्षत्रों का भोग कर रहा हो, उस समय किसी शुभ ग्रह की दृष्टि सूर्य पर हो तो, इस प्रकार की संक्रान्ति जगत् में उथलपुथल करती है । सुभिक्ष और वर्षा के लिए यह योग उत्तम है । यद्यपि संक्रान्ति मात्र के विचार से उत्तम कल नहीं घटता है, अतः ग्रहों का सभी दृष्टियों से विचार करना आवश्यक है ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy