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________________ 378 भद्रबाहुसंहिता मृत्यु को देता है । यह 125 वर्ष प्रवास में रहकर अमृतोत्पन्न कुमुद केतु के अन्त में तीन पक्ष से अधिक उदय में रहता है । जितने दिन तक यह दीखता रहता है उतने ही महीनों तक इसका फल मिलता है। जितने मास और वर्ष तक दीखता है, उससे तीन पक्ष अधिक फल रहता है । मणिकेतु- यह मणिकेतु दूध की धारा के समान स्निग्ध शिखावाला श्वेत रंग का होता है । यह रात्रि भर एक प्रहर तक सूक्ष्म तारा के रूप में दिखायी देता है । कपाल केतु की गति के अन्त में यह मणिकेतु पश्चिम दिशा में उदित होता है और उस दिन से साढ़े चार महीने तक सुभिक्ष करता है । ___ कलिकिरण रौद्र केतु -(किरण)--कलिकिरण रौद्रकेतु वैश्वानर वीथी के पूर्व की ओर उदित होकर 30 अंश ऊपर चढ़कर फिर अस्त हो जाता है। यह 300 वर्ष 9 महीने तक प्रवास में रहकर अमृतोत्पन्न मणिकेतु की गति के अन्त में उदित होता है। इसकी शिखा तीक्ष्ण, रूखी, धूमिल, तांबे की तरह लाल, शूल की आकृति वाली और दक्षिण की ओर झुकी हुई होती है। इसका फल तेरहवें महीने होता है । जितने महीने यह दिखायी देता है उतने ही वर्ष तक इसका भय समझना चाहिए । उतने वर्षों तक भूख, अनावृष्टि, महामारी आदि रोगों से प्रजा को दुःख होता है। संवत्तं केतु-यह संवर्तकेतु 1008 वर्ष तक प्रवास में रहकर पश्चिम में सायंकाल के समय आकाश के तीन अंशों का आक्रमण करके दिखायी देता है। धूम्र वर्ण के शूल की-सी कान्ति वाला, रूखी शिखावाला यह भी रात्रि में जितने मुहूर्त तक दिखायी दे उतने ही वर्ष तक अनिष्ट करता है। इसके उदय होने से अवृष्टि, दुर्भिक्ष, रोग, शस्त्रों का कोप होता है और राजा लोग स्वचक्र और परचक्र से दुखी होते हैं। यह संवर्त केतु जिस नक्षत्र में उदित होता है और जिस नक्षत्र में अस्त होता है तथा जिसे छोड़ता है अथवा जिसे स्पर्श करता है उसके आश्रित देशों का नाश हो जाता है। ध्र वकेतु-यह ध्र वकेतु अनियत गति और वर्ण का होता है। सभी दिशाओं में जहां-तहां नाना आकृति का दीख पड़ता है । द्य, अन्तरिक्ष का भूमि पर स्निग्ध दिखायी दे तो शुभ और गृहस्थों के गृहांगण में तथा राजाओं के, सेना के किसी भाग में दिखायी देने से विनाशकारी होता है। अमतकेतु-जल, भट, पद्म, आवर्त्त, कुमुद, मणि और संवत-ये सात केतु प्रकृति से ही अमृतोत्पन्ध माने जाते हैं। दुष्टकेतु फल-जो दुष्ट केतु हैं वे क्रम से अश्विनी आदि 27 नक्षत्रों में गये हुए देशों के नरेशों का नाश करते हैं। विवरण अगले पृष्ठ पर देखें।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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