SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 316 भद्रबाहुसंहिता उत्तम नहीं होता है। अवशेष सभी श्रेणी के व्यक्तियों के लिए उत्तम होता है । मूल नक्षत्र का शनि काशी, अयोध्या और आगरा में अशान्ति उत्पन्न करता है । यहाँ संघर्ष होते हैं तथा उक्त नगरों में अग्नि का भी भय रहता है। अवशेष सभी प्रदेशों के लिए उत्तम होता है । पूर्वापाड़ा में शनि के रहने से बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्यभारत के लिए भयकारक, अल्प वर्षा सूचक और व्यापार में हानि पहुंचाने वाला होता है । उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शनि विचरण करता हो तो यवन, शबर, भिल्ल आदि पहाड़ी जातियों को हानि करता है । इन जातियों में अनेक प्रकार के रोग फैल जाते हैं तथा आगरा में भी संघर्ष होता है । श्रवण नक्षत्र में विचरण करने से शनि राज्यपाल, राष्ट्रपति, मुख्यमन्त्री एवं प्रधानमन्त्री के लिए हानिकारक होता है । देश के अन्य वर्गों के व्यक्तियों के लिए कल्याण करने वाला होता है। धनिष्ठा नक्षत्र में विचरण करने वाला शनि धनिकों, श्रीमन्तों और ऊँचे दर्जे के व्यापारियों के लिए हानि पहुंचाता है। इन लोगों को व्यापार में घाटा होता है । शतभिषा और पूर्वाभाद्रपद में शनि के रहने से पण्यजीवी व्यक्तियों को विघ्न होता है। उक्त नक्षत्र के शनि में बड़े-बड़े व्यापारियों को अच्छा लाभ होता है। उत्तराभाद्रपद में शनि के रहने से फसल का नाश, दुभिक्ष, जनता को कष्ट, शस्त्रभय, अग्निभय एवं देश के सभी प्रदेशों में अशान्ति होती है। रेवती नक्षत्र में शनि के विचरण करने से फसल का अभाव, अल्पवर्षा, रोगों की भरमार, जनता में विद्वेष-ईर्ष्या एवं नागरिकों में असहयोग की भावना उत्पन्न होती है। राजाओं में विरोध उत्पन्न होता है । गुरु के विशाखा नक्षत्र में रहने पर शनि यदि कृत्तिका नक्षत्र में स्थित हो तो प्रजा को अत्यन्त पीड़ा दुर्भिक्ष और नागरिकों में भय पैदा होता है। अनेक वर्ण का शनि देश को कष्ट देता है, देश के विकास में विघ्न करता है । श्वेत वर्ण का शनि होने पर भारत के सभी प्रदेशों में शान्ति, धन-धान्य की वृद्धि एवं देश का सर्वांगीण विकास होता है ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy