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________________ 314 भद्रबाहुसंहिता समर्पता-वस्तुओं के भाव में समता और प्रजा का विकास होता है। उक्त नक्षत्रों का शनि मनोहर वर्ण का होने से और अधिक शान्ति देता है तथा पूर्वीय प्रदेशों के निवासियों को अर्थलाभ होता है । पश्चिम प्रदेशों के नागरिकों के लिए उक्त नक्षत्रों का शनि भयावह होता है। चोर, डाकुओं और गुण्डों का उपद्रव बढ़ जाता है । आश्लेषा, शतभिषा और ज्येष्ठा नक्षत्रों में स्थित शनि सुभिक्ष, सुमंगल और समयानुकूल वर्षा करता है । इन नक्षत्रों में शनि के स्थित रहने से वर्षा प्रचुर परिमाण में नहीं होती। समस्त देश में अल्प ही वृष्टि होती है । मूलनक्षत्र में शनि के विचरण करने से क्षुधाभय, शत्रुभय, अनावृष्टि, परस्पर संघर्ष, मतभेद, राजनीतिक उलट-फेर, नेताओं में झगड़ा, व्यापारी वर्ग को कष्ट एवं स्त्रियों को व्याधि होती है। ___ अश्विनी नक्षत्र में शनि के विचरण करने से अश्व, अश्वारोही, कवि, वैद्य और मन्त्रियों को हानि उठानी पड़ती है। उक्त नक्षत्र का शनि बंगाल में सुभिक्ष, शान्ति, धन-धान्य की वृद्धि, जनता में उत्साह, विद्या का प्रचार एवं व्यापार की उत्पत्ति, करने वाला है। आसाम और बिहार के लिए साधारणतः सुखदायी, अल्प वृष्टिकारक एवं नेताओं में मतभेद उत्पन्न करने वाला, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के लिए सुभिक्षकारक, बाढ़ के कारण जनता को साधारण कष्ट, आर्थिक विकास एवं धान्य की उत्पत्ति का सूचक है। मद्रास, कोचीन, राजस्थान, हिमाचल, दिल्ली, पंजाब और विन्ध्य प्रदेश के लिए साधारण वृष्टिकारक, सुभिक्षोत्पादक और आर्थिक विकास करने वाला है। अवशेष प्रदेश के लिए सुखोत्पादक और सुभिक्षकारक है। अश्विनी नक्षत्र के शनि में इंग्लैण्ड, अमेरिका और रूस में आन्तरिक अशान्ति रहती है। जापान में अधिक भूकम्प आते हैं तथा अनाज की कमी रहती है। खाद्य पदार्थों का अभाव सुदूर पश्चिम के राष्ट्रों में रहता है । भरणी नक्षण का शनि विशेष रूप से जल-यात्रा करने वालों को हानि पहुंचाता है। नर्तक, गाने-बजाने वाले एवं छोटी-छोटी नावों द्वारा आजीविका करने वालों को कष्ट देता है। कृत्तिका नक्षत्र का शनि अग्नि से आजीविका करने वाले, क्षत्रिय, सैनिक और प्रशासक वर्ग के लिए अनिष्टकर होता है। रोहिणी नक्षण में रहने वाला शनि उत्तरप्रदेश और पंजाब के व्यक्तियों को कष्ट देता है। पूर्व और दक्षिण के निवासियों के लिए सुख-शान्ति देता है । जनता में क्रान्ति उत्पन्न करता है। समस्त देश में नयी-नयी बातों की मांग की जाती है। शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्र में उन्नति होती है। मृगशिर नक्षत्र में शनि के विचरण करने से याजक, यजमान, धर्मात्मा और शान्तिप्रिय लोगों को कष्ट होता है । इस नक्षत्र पर शनि के रहने से रोगों की उत्पत्ति अधिक होती है तथा अग्निभय और शस्त्रभय बराबर बना रहता है । आर्द्रा नक्षत्र पर शनि के रहने से तेली, धोबी, रंगरेज और चोरों को अत्यन्त कष्ट होता है, देश के सभी भागों में
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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