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________________ 300 भद्रबाहुसंहिता कर्वट प्रदेशों में खेती का नाश, महामारी एवं राजनीतिक संघर्ष होता है। शुक्र का उक्त नक्षत्रों में उदय होना नेताओं, महापुरुषों एवं राजनीतिक व्यक्तियों के लिए शुभ नहीं है । पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी और भरणी इन नक्षत्रों में शुक्र का उदय होने से, जालन्धर और सौराष्ट्र में दुर्भिक्ष, विग्रह-संघर्ष एवं कलिंग, स्त्रीराज्य और मरुदेश में मध्यम वर्षा और मध्यम फसल उत्पन्न होती है । घी और धान्य का भाव सम्पूर्ण देश में कुछ महंगा होता है। कृत्तिका, मघा, आश्लेषा, विशाखा, शतभिषा, चित्रा, ज्येष्ठा, धनिष्ठा और मूल नक्षत्र में शुक्र का उदय हो तो गुर्जर देश में पुद्गल का भय, दुर्भिक्ष और द्रव्यहीनता; सिन्धु देश में उत्पात, मालव में संघर्ष; आसाम, बिहार और बंग प्रदेश में भय, उत्पात, वर्षाभाव एवं महाराष्ट्र, द्रविड़ देश में सुभिक्ष, समय पर वर्षा होती है। शुक्र का उक्त नक्षत्रों में उदय होना अच्छा माना जाता है। सम्पूर्ण देश के भविष्य की दृष्टि से आश्लेषा, भरणी, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद इन नक्षत्रों का उदय अशुभ, दुभिक्ष, हानि एवं अशान्ति करने वाला है । अवशेष सभी नक्षत्रों का उदय शुभ एवं मंगल देने वाला शुक्रास्त विचार-अश्विनी, मृगशिर, हस्त, रेवती, पुष्य, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण और स्वाति नक्षत्र में शुक्र का अस्त हो तो इटली, रोम, जापान में भूकम्प का भय; वर्मा, श्याम, चीन, अमेरिका में सुख-शान्ति; रूस, भारत में साधारण शान्ति रहती है। देश के अन्तर्गत कोंकण, लाट और सिन्धु प्रदेश में अल्प वर्षा, सामान्य धान्य की उत्पत्ति, उत्तर प्रदेश में अत्यल्प वर्षा, अकाल, द्रविड प्रदेश में विग्रह, गुर्जर देश में सुभिक्ष, बंगाल में अकाल, बिहार और आसाम में साधारण वर्षा, मध्यम खेती उपजती है। शुक्रास्त के उपरान्त एक महीना तक अन्न महंगा बिकता है, पश्चात् कुछ सस्ता हो जाता है। घी, तेल, जूट आदि पदार्थ सस्ते होते हैं। प्रजा को सुख की प्राप्ति होती है। सभी लोग अमन-चैन के साथ निवास करते हैं । कृत्तिका, मघा, आश्लेषा, विशाखा, शतभिषा, चित्रा, ज्येष्ठा, धनिष्ठा और मूल नक्षत्र में शुक्र अस्त हो तो हिन्दुस्तान में विग्रह, मुसलिम राष्ट्रों में शान्ति एवं उनकी उन्नति, इंगलैण्ड और अमेरिका में समता, चीन में सुभिक्ष, वर्मा में उत्तम फसल एवं हिन्दुस्तान में साधारण फसल होती है। मिश्र देश के लिए इस प्रकार का शुक्रास्त भयोत्पादक होता है, अन्न का अभाव होने से जनता को अत्यधिक कष्ट होता है। मरुस्थल और सिन्धु देश में सामान्यतया दुभिक्ष होता है। मित्र राष्ट्रों के लिए उक्त प्रकार का शुक्रास्त अनिष्टकर है। भारत के लिए सामान्यतया अच्छा है । वर्षाभाव होने के कारण देश में आन्तरिक अशान्ति रहती है तथा देश में कल-कारखानों की उन्नति होती है। मघा में शुक्रास्त होकर विशाखा में उदय को प्राप्त करे तो देश के लिए सभी तरह से भयोत्पादक होता
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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