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________________ 296 भद्रबाहुसंहिता वैश्वानरपथं प्राप्त: पूर्वतः प्रविशेद यदा। षडशीति तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठत: ॥206॥ जब शुक्र वैश्वानरपथ में पूर्व की ओर से प्रवेश करता है तो 86 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।206।। मृगवीथीं 'पुन: प्राप्त: प्रवासं यदि गच्छति। चतुरशीति तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ॥207॥ यदि शुक्र मृगवीथि को दुबारा प्राप्त होकर अस्त हो तो 84 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।207।। अजवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं यदि गच्छति। अशोति षडहानि तु गत्वा दृश्येत पृष्ठतः॥208॥ यदि शुक्र अजवीथि को पुनः प्राप्त कर अस्त हो तो 86 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।208।। जरद्गवपथप्राप्त: प्रवासं यदि गच्छति । सप्तति पंच वाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ।।209॥ यदि शुक्र जरद्गवपथ को प्राप्त होकर प्रवास करे तो 75 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।209॥ गोवीथीं समनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। सप्तति तु तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठत: ।2100 गोवीथि को प्राप्त होकर शुक्र प्रवास करे तो 70 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।210॥ वषवीथिमनप्राप्त: प्रवास करते यदा। पंचषष्टि तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ॥211॥ वृषवीथि को प्राप्त होकर शुक्र प्रवास करे तो 65 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।211॥ एरावणपथं प्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। षष्टि तु स तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ।।2 12॥ ऐरावणवीथि को प्राप्त होकर शुक्र प्रवास करे तो 60 दिनों के पश्चात् पीछे 1. अनुप्राप्तः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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