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________________ प्रस्तावना 37 कार्यपटु और सुखी होता है । जज या मजिस्ट्रेट का पद उसे मिलता है। जिसके मणिबन्ध में यवमाला की एक ही धारा दिखाई पडे वह पुरुष धनी होता है । सभी लोग उसकी प्रशंसा करते हैं । जिस व्यक्ति के हाथ की तीनों मणिबन्ध रेखाएँ स्पष्ट और सरल हों, वह व्यक्ति जगन्मान्य, पूज्य और प्रतिष्ठित होता है। तर्जनी और मध्यमांगुली के बीच से निकलकर अनामिका और कनिष्ठा के मध्यस्थल तक जाने वाली रेखा शुक्रबन्धिनी कहलाती है। इस रेखा के भग्न या बहुशाखा विशिष्ट होने पर मूर्छा रोग होता है । इस रेखा के स्थान-स्थान में भग्न होने से मनुष्य लम्पट होता है । शुकबन्धिनी रेखा के होने से मनुष्य कभी विषाद में मग्न रहता है और कभी आनन्द में । इस रेखा के बृहस्पति स्थान से अर्द्धचन्द्राकार हो सीधी तरह से बुध के स्थान तक जाने से व्यक्ति ऐन्द्रजालिक होता है और साहित्यिक भी होता है। ___ रेखाओं के रक्तवर्ण होने से मनुष्य आमोदप्रिय, उग्रस्वभाव; रक्तवर्ण में कुछ कालिमा हो अर्थात् रक्तवर्ण रक्ताभ हो तो प्रतिहिंसापरायण, शठ, क्रोधी होता है। जिसकी रेखा पीली होती है, वह उच्चाभिलाषी, प्रतिहिंसापरायण तथा कर्मठ होता है । पाण्डुवर्ण की रेखाएं होने से स्त्री स्वभाव का व्यक्ति होता है । ग्रहों के स्थानों का वर्णन करते हुए बतलाया गया है कि तर्जनी मूल में गुरु का स्थान, मध्यमा अंगली के मूल में शनि का स्थान, अनामिका के मूल देश में रवि स्थान, कनिष्ठा के मूल में बुध स्थान तथा अंगूठे के मूल देश में शुक्र स्थान है। मंगल के दो स्थान हैं-एक तर्जनी और अंगूठे के बीच में पितृरेखा के समाप्ति स्थान के नीचे और दूसरा बुध स्थान के नीचे और चन्द्रस्थान के ऊपर ऊर्ध्व रेखा और मात रेखा के नीचे वाले स्थान में । मंगल स्थान के नीचे से मणिबन्ध के ऊपर तक करतल के पार्श्व भाग के स्थान को चन्द्रस्थान कहते हैं । सूर्य के स्थान के ऊँचा होने से व्यक्ति चंचल होता है, संगीत तथा अन्यान्य कलाविशारद और नये विषयों का आविष्कारक होता है। रवि और बुध का स्थान उच्च होने से व्यक्ति विज्ञ, शास्त्र विशारद और सुवक्ता होता है । अत्युच्च होने से वह अपव्ययी, विलासी, अर्थलोभी और तार्किक होता है। रवि का स्थान ऊंचा होने से व्यक्ति मध्यमाकृति, लम्बे केश, बड़े-बड़े नेत्र, किञ्चित् लम्बा मुखमण्डल, सुन्दर शरीर और अंगुलियाँ लम्बी होती हैं। रवि के स्थान में कोई रेखा न होने पर व्यक्ति को नाना दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है । जिसके हाथ का उच्च सूर्य क्षेत्र बुध क्षेत्र की ओर झुक रहा हो, तो उसका स्वभाव नम्र होता है। व्यापार में उन्नति करने वाला, अर्थशास्त्र का अपूर्व विद्वान् एवं कलाप्रिय होता है । जिसके हाथ का उच्च सूर्यक्षेत्र शनिक्षेत्र की ओर झुका हुआ हो, वह धनाढ्य और अनेक प्रकार के भोग-विलासों में रत रहता है । सूर्यक्षेत्र यदि गुरुक्षेत्र की ओर झुका हुआ हो तो व्यक्ति दयालु, गुणी, न्यायप्रिय, सत्यवादी,
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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